Sunday, 10 April 2016

करने से होता है ,पहले करना चाहिये (First Start Doing)

एक बार एक आदमी आचार्य विनोबा के पास आकर बोला "मुझे दारू(शराब) छोड़नी हैं।मुझे पता हैं की शराब बुरी हैं। 
लेकिन क्या करू यह शराब मुझे छोड़तीं ही नहीं।अभी आप ही मुझे कुछ उपाय बताओ।


शराब




ठीक हैं,तुम कल आना लेकिन मेरी एक शर्त हैं,वोह तुमे मान्य होनी  चाहिये। विनोबा जी बोले।

हा, मुझे मान्य हैं आपकी शर्त। वोह आदमी बोला।लेकिन मुझे शराब से छुटकारा दे दो। 

विनोबाजी बोले,कल मुझे बाहर से आवाज दो,अंदर नहीं आना,मैँ ही तुमे बाहर आकर उपाय बताऊँगा। 


दुसरे दिन वोह आदमी आया और शर्त के मुताबिक़ वह बाहर से उन्हे बुलाने लगा। 


विनोबाजी बोले, आता हूँ। 


वह आदमी विनोबा जी को बुलाता और विनोबाजी कहते "आता हूँ "

ऐसे चार-पांच बार हो गया। फिर वह आदमी परेशान होकर बोला  विनोबाजी आइए ना बाहर, मैँ कब से राह देख रहा हूँ। 

तब विनोबाजी अंदर से बोले मैँ कब से बाहर आने की कोशिश कर रहा हूँ। लेकिन यह खंबा मुझे छोड़ नहीं रहा। 

वह आदमी परेशान होकर अंदर चला गया, देख कर अचंबित हो गया " विनोबाजी ने ही खंबे को पकड़ रखा था। "

वह बोल" आचार्य,आप ने ही उस खबे को पकड़ रखा हैं,फ़िर आप क्यों  कह रहे हो की यह खंबा मुझे छोड़ नहीं रहा हैं। 

 विनोबाजी ने फट से खबे को छोड़कर कहा"दोस्त, तुम भी शराब को पकड़कर भैठे हो।तुम को ही उसे छोड़ना है।पक्का निश्चय करो,अब  तुम शराब को छोड़ सकते हो।