Showing posts with label सत्य कथा. Show all posts
Showing posts with label सत्य कथा. Show all posts

Monday, 10 April 2017

भक्ति का प्यासा भगवान (God Of Devotion)

ताज खां नामक एक मुस्लिम राजस्थान के करौली नगर की कचहरी में चपरासी के रूप में नियुक्त थे।
एक बार वे कचहरी के काम से मदनमोहन मंदिर के पुजारी गोस्वामी जी के पास आए और मंदिर के बाहर खड़े होकर पुजारी जी को आवाज लगाने लगे। अचानक उनकी नजर मंदिर में स्थित भगवान श्री राधा मदनमोहन श्रीकृष्ण जी पर चली गई।



भगवान श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य की एक झलक पाते ही उनका दिल उनका दीवाना बन बैठा। वे उनके मुख मंडल की और टकटकी लगाकर निहारते ही रह गए। जब पुजारी जी मंदिर से बाहर आए तो उनका ध्यान भंग हुआ और कचहरी का संदेश उन्हें देकर वे चले गए।

ताज खां वहाँ से चले तो गए, लेकिन उनका दिल फिर से भगवान श्रीकृष्ण की उसी साँवली सलोनी छवि को देखने के लिए रह-रहकर मचलने लगा। न उन्हें दिन को चैन था और न रात को। उनके दिमाग में मदनमोहन जी की छवि बार-बार नाचने लगी।

अब ताज खां इस ताक में रहने लगे कि किसी न किसी तरह हर रोज इस सुंदर छबि के दर्शन किए जाएं।
मुस्लिम होने के कारण वे मंदिर में प्रवेश तो नहीं कर सकते थे, अतः वे मंदिर के बाहर मंडराते रहते और जब कोई निकट न होता तो मदनमोहनजी को निहारने लगते। *लेकिन प्रेम लाख छिपाने पर भी भला छिपता कहाँ है? पुजारी जी को आखिर पता चल ही गया कि यह मुस्लिम छिप-छिपकर हमारे मदनमोहन जी का दर्शन करता है।

उन्होंने ताज खां को मंदिर आने से मना कर दिया। मना करने के बावजूद ताज खां का दिल न माना और वे भगवान के रूप की एक झाँकी देखने के लिए मंदिर पहुंच गए। किंतु मंदिर के एक कार्यकर्ता ने उन्हें वहाँ से धक्का मार कर भगा दिया।

ताज खां अगले दिन मंदिर नहीं गए, तो उनका दिल मदनमोहन जी को देखने के लिए तड़पने लगा। वे उन्हें याद कर-करके फूट-फूटकर रोने लगे। अपने दिल का हाल बताएं भी तो किसे बताएं? अन्न-जल त्यागकर मदन मोहन जी से ही दर्शन की प्रार्थना करने लगे। भक्त की करूण पुकार सुनकर भगवान का हृदय पसीज उठा।

इधर मदनमोहन मंदिर में रात की आरती के बाद भगवान के सामने प्रसाद का थाल रखकर दरवाजा बाहर से बंद कर दिया गया।भगवान मदनमोहनजी ने मंदिर के कार्यकर्ता का रूप धारण किया और प्रसाद का थाल लेकर अपने भक्त ताज खां के घर जा पहुंचे।

 भगवान ने जब ताज खां के घर का दरवाजा खटखटाया, उस समय भी वे भगवन के दर्शन के लिए तड़प रहे थे। भगवान ने ताज खां के हाथ में थाल देकर कहा, "पुजारी जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है। आप प्रसाद ग्रहण कर लें और सुबह थाल लेकर मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए पधारें।"

ताज खां को तो विश्वास ही नहीं हो पाया कि जिन पुजारी जी ने उन्हें मंदिर में बाहर से ही भगवान को निहारने से मना कर दिया था, उन्हीं ने उनके लिए इतनी आधी रात में प्रसाद का थाल भेजा है।
किंतु जब मंदिर के कार्यकर्ता का रूप धारण किये हुए भगवान ने आग्रह किया तो उनकी बात मानकर ताज खां ने भावुक मन से प्रसाद ग्रहण कर लिया। इसके बाद भगवान वहाँ से चले गये।

अब भगवान ने मंदिर के पुजारी जी को सपने में दर्शन देकर कहा, "प्रसाद का थाल मैं ताज खां को दे आया हूँ। सुबह जब वे प्रसाद का थाल लेकर मंदिर में आएं तो उन्हें मेरे दर्शन से वंचित न करना।"

पुजारीजी ने सुबह उठकर देखा तो मंदिर में प्रसाद का थाल नहीं था। वे चकित हो उठे और दौड़े हुए वहाँ के महाराज के पास गये और उन्होंने सारी घटना कह सुनाई।

महाराज भी एक मुस्लिम पर भगवान की कृपा को देखकर भाव विभोर हो उठे। दोनों मंदिर में ताज खां की प्रतीक्षा करने लगे। जब ताज खां पूजा के समय हाथ में प्रसाद का थाल लिए मंदिर में घुसे तो सभी उपस्थित भक्तजन आश्चर्यचकित रह गए। महाराज दौड़कर आगे बढ़े और भगवान मदनमोहनजी के सच्चे भक्त ताज खां को गले से लगा लिया।

जब सभी श्रद्धालुओं को इस घटना का पता चला तो वे भक्त ताज खां की जय-जयकार करने लगे।
आज भी करौली के मदनमोहन मंदिर में जब शाम की आरती होती है, तो इस दोहे को गाकर भक्त ताज खां को याद किया जाता है।

*ताज भक्त मुसलिम पै प्रभु तुम दया करी।*
*भोजन लै घर पहुंचे दीनदयाल हरी॥*

Monday, 1 August 2016

संबंध का आनंद (Happy Relationship)

यह डॉ. एपीजे अब्दुल कलम इनके बचपन की याद हैं। 
प्रत्येक माता के जैसे उनकी माता सब के लिए खाना बनाती थी। दिन भर काम करने के पश्च्यात माता बहुत थक जाती थी। 


एक रात्री समय माता ने खाना बनाया और पिताजी को खाना परोस दिया। 
 उनके थाली में एक सब्जी और एक तरफ से पूर्णतः जली हुई रोटी थी।

उस जली हुई रोटी के लिये कोई कुछ बात करने के लिये में राह देख रहा था। 
पिताजी ने अपना भोजन चुपचाप समाप्त किया और मुझे अपने स्कूल के दिनभर की बाते पूछी। 

अंततः मैंने उन्हें जली हुई रोटी के लिये पूछा। माताजी ने उनसे उस रोटी के लिये क्षमा मांगी थी। पिताजी ने जो कहा वो कलाम कभी नहीं भूले। 
उनके पिताजी ने माताजी से कहा,"अरे,कुछ नहीं मुझे जली हुई रोटी अच्छी लगती हैं। "

रात को सोने के पूर्व मैंने पिताजी से पूछा "सच में आप को जली हुई रोटी अच्छी लगती है ?"

उस समय मेरे पिताजी ने मुझे नजदीक लेकर समजाया,"तेरी माता दिनभर के काम से बहुत थक जाती है। जली हुई रोटी से मुझे कोई तकलीफ नहीं होने वाली "
लेकिन अगर मैंने  उन्हें बुरा भला कहता तो उनको बहुत दुःख होता। 

उन्होंने कहा बेटा,"जीवन बहुत ही अपूर्ण चीजो से भरा हुआ है।और मैं भी पूर्ण नहीं हूँ। 

प्रत्येक संबंध संभाल ने लिये हमे एक दूसरे के दोष स्वीकार करना होगा। और संबंध का आनंद लेना होगा।

Friday, 9 October 2015

कृति से मार्गदर्शन

 यह सत्य कथा दक्षिण भारत के साधु रमना महर्षि  के आश्रम से हैं। 
अपने रोज़ाना जीवन में आने वाली प्रत्येक वस्तु महत्त्वपूर्ण होती हैं। यह उनकी धारणा होती थी। किसी भी वस्तुका  अपव्यय उन्हें मान्य नहीं था। 

रमणा महर्षि
एक बार साधु रमना महर्षि आश्रम के भोजन कक्ष से जाते समय भोजन कक्ष के नजदीक  थोड़े चावल गिरे देखे।  उसी समय वोह जमीन पर  बैठकर चावल इकट्ठा करने लगे। महर्षि को अचानक ऐसे भोजन कक्ष के बाहर बैठे देखकर शिष्यों बेचैन  हो  गए। महर्षि क्या कर रहे हैं देखने के लिए सारे भक्त भीड़ में इकट्ठा  हो गये। ईश्वर भक्ति के लिये अपने सारे सुख त्याग करनेवाला  महान महर्षि थोडेसे  चावल के दाने के लिए उनका संघर्ष  देखकर भक्त अचंबित हो गए। 

 महर्षिके इस  कृत्य पर उनका विश्वास नहीं हो रहा था। अंतत एक शिष्य ने गुरुदेव को पूछा ," महर्षि, भोजन कक्ष में चावल के बहुत सारे बोरी है। 
और आप यहाँ थोडेसे चावल के दाने के लिए इतना परिश्रम क्यों कर रहे हो "? यह सुनकर महर्षि ने शिष्य के पास देखा।  और फिरसे चावल इकट्ठा करने लगे। और बोले ,"तुमको यह सिर्फ कुछ चावल के दाने दिख रहे हैं। लेकिन उस दाने में क्या हैं ,यह देखने की कोशिश करो। 

जमीन की खुदाई, बीज बोने वाले किसान की कठोर मेहनत,समुद्र का पानी ,सूरज की रोशनी,बादल और बारिश और चावल के पोंधे का नवजीवन…  यह सब जिसमे समाया हैं ऐसे बहुमोल  दाने पैर से लात मारना,नष्ट करना कितना योग्य हैं ?

प्रश्न पूछने वाले और सभी शिष्यों को अपनी  भूल समज  आयी। 

अन्न और पानी नुक़सान करनो वालो को महर्षि ने अपने छोटे से कृत्य से बहुत कुछ बता दिया।


Monday, 28 September 2015

व्यवहारिक आश्रम

पवनार आश्रम में आचार्य विनोबाजी ने साफ़-सफाई   की काम  हाँथ में लिया था। वहा पर  उद्योगपति भी आचार्य जी  को मदत  कर  रहे थे। वह  सफाई  उन्हें थोड़ा मुश्किल हो रहा था ।

फिर आचार्य जी बोले "अच्छा  हैं। आप आश्रम के  सारे लालटेन साफ़ करो ,उनके  शीशे साफ़ करना  और  लालटेन में मिटटी  का तेल  भरना " यह सब काम करो। 
आचार्य विनोबा
उद्योगपतिने  तुरंत  अपनी सहमती  दिखायी। दूसरे  दिन शाम को विनोबाजी बाहर से आश्रम में आये। उन्होने देखा की आँगन में मिटटी  का तेल का तीक्ष्ण गंध आ रहा था। जमीन  पर तेल गिरा पड़ा था। और एक कोने में साफ़ लालटेन रखे थे। उन्होने उद्योगपति  बुलाया पूछा "इतना तेल   कैसे  गिर पड़ा?"

उद्योगपतिने  कहा "मैंने लालटेन साफ़ करने पश्चायत उसमे  तेल भरा " और तेल पूरा भरने के कारण यहाँ से वह ले  जाते वक्त तेलगिरने लगा । आचार्य बोले "बेटा , काम करते  वक्त हमारा पूरा मन उस  में लगा होना चाहिये। 

 लालटेन थोड़ी  रिक्त होनी चाहिये ,तो लालटेन से तेल गिर नहीं पड़ता। और उसके  कारण  लालटेन का  विस्फोट  का  खतरा  नहीं होता। उद्योगपति आचार्य को  ध्यान से सुन रहे थे। 


आचार्य आगे बोले"अपने मन की  टंकी भी ऐसी  होनी चाहिये। केवल अपने ही विचारोंसे पूरी भरी नहीं होनी चाहिये। उसमे थोड़ी जगह रखनी चाहिये दूसरों के विचारों के  लिये।  तो फिर विचारों  की  गड़बड़   नहीं होती। एकाकीपन नही आता। 





Wednesday, 5 August 2015

अंध:अनुकरण -Blind Following

गंगा नदी का विशाल पात्र  भविको से भरा हुआ था। हर व्यक्ति गंगा  स्नान के लिये आतुर था। 

अंध:अनुकरण


ऐसी समय  एक भक्त वहा आ गया।  गंगा  स्नान का पुण्य लेने के लिए उसने कपडे निकाले।  लेकिन कपडे  ओर मौल्यवान चीजे   कहा रखे यह सोच कर वह परेशान था।  बहुत देर सोच ने के बाद उसे एक कल्पना आयी। 


उसने  उसी  गंगा पात्र में  खुदाई सुरु कियी और एक बड़ा गिड्डा खोद  दिया। और  उस गिड्डे में  सारे कपडे और  मौल्यवान चीजे रखी। 
गिड्डा पहचान ने के लिए उसने वह पर एक शिवलिंग  बना लिया और वह
गंगा  स्नानके लिए चला गया। 

उसी  समय  वहा पर और एक  भक्त आया। उसकी नजर  उस शिवलिंग के पर पड़ी।  और  उसे लगा की आज शिव जी का विशेष माहात्मय हैं।  और उसने उसी समय उस शिवलिंग के बगल में और एक शिवलिंग बना लिया।  उसको  नमस्कार  वह नहाने चला गया। 

देखते  देखते हर एक आने वाला भक्त ,उधर शिवलिंग बनाना प्रारंभ किया।  आधे-एक घंटे  में पूरा गंगा  पात्र शिवलिंग से भर गया। 

इधर वोह पहले वाला  भक्त स्नान करके आ गया।  वोह आश्चर्यचकित हो   गया। पूरा  गंगा पात्र पुरे शिवलिंग से भर गया था।  यहाँ -वहां शिवलिंग,सब जगह शिवलिंग। वोह परेशान हो गया की उसने बनाया हुआ
शिवलिंग कैसे ढूंढने का  और अपने कपडे और मौल्यवान चीजे कैसी  मिलेगी। बिचारा वह परेशान होकर निचे  बैठ गया।

श्रद्धा से किया हुआ अंध:अनुकरण  गलत ही होता हैं। मनुष्य हरवक्त सश्रद्धा रहना उचित हैं।

Saturday, 27 June 2015

कम बोलो ; अभ्यास ज्यादा

यह  ५० साल पुरानी बात हैं।  जल्दी सुबह सोने-चांदी दुकान में दो लोग आए थे। एक मुस्लिम बूढ़े सफ़ेद दाढ़ी और २० साल की उम्र का नौजवान। 
 
कम बोलो ; अभ्यास ज्यादा



यह बूढ़े आदमी का कराची पाकिस्तान में बढ़ा व्यापार था।  उसने व्यापारकी सुरुवात पुणे की  में  थी। उनका माल देश-विदेश में भेजा जाता था।  उसने यह व्यापार १९२० में चालु किया था।  उस बूढ़े आदमी को व्यापारमें बहुत बरकत मिली थी।  

१९४५ में मजहबी (जातीय ) दंगे में उस आदमी का सब कुछ चला गया।  एक ही दिन में सब कुछ छीन गया। 
और उस बूढ़े आदमी को अपनी बाल बच्चे के साथ  पाकिस्तान में आश्रित बन कर जाना  पड़ा। उस बूढ़े आदमी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी। ओर पूरा व्यापार फिर से खड़ा किया  और अपने बेटो के हवाले किया।   उसने अच्छे मन से व्यवसाय किया और  लोगो की दुवा ली। फिर वोह सोचने लगा ओर कुछ करना  बाकी हैं क्या ?

उसने यह बात अपने मौलवी से कही। मौलवी  ने किसीका कुछ उधार देना बाकी हैं क्या ? कुछ याद करो। 
इस्लाम में ऐसे उधारी बाकी रहे आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती।  उधारी देने वाले आत्मा को भी मुक्ति नहीं मिलती। 

उस बूढ़े आदमी  को एकाएक याद आया की मैंने व्यापार के लिए  पुणे में सोने-चांदी दुकान से कर्ज लिया था। 
 मजहबी (जातीय ) दंगे में रातोरात में चला आया ओर यह कर्ज देने  लिए समय नहीं मिला। 

बूढ़ा आदमी तत्काल अपने पोते और पैसो के साथ पुणे आ गये।   जल्दी सुबह सोने-चांदी दुकान में जाकर अपना कर्ज ओर व्याज देने आ गये।  सोने-चांदी दुकान मलिक ने बूढ़े आदमी को पहचाना ओर उनकी सब बात सुनी।  लेकिन पैसे लेने लिया साफ़ मना किया।  दुकान मलिक ने कहा मैंने  आपका कर्ज २५ साल पहले मेरे हिसाब से निकाल दिया।  आप अकस्मात् परेशानी की वजह से कर्ज नहीं दे पाये। मेरे हिसाब के किताब में कर्ज नहीं दिख रहा तो मैं वापस लू कैसे।  यह पैसा मेरा  नहीं मैं लूँगा। 

 दुकान मलिक ने जैन धर्म की शिक्षा  कही "मन से ,विचारों से ओर अपनी कृती से लिया हुआ निर्णय
 अंतिम होता हैं ".  लोभी  मन से लिया हुआ निर्णय पाप हैं। 

दुकान मलिक ओर बूढ़े आदमी अपनी बात पर अड़े रहे।  दुकान मलिक के लेखा परीक्षक ने कहा की पुणे कैंप में ईस्ट स्ट्रीट में एक यतीम खाना हैं।  हम सब  लोग वहा पर जाकर यह पैसा वहा जमा कर  देंगे।  अनाथ बच्चोँ की  सेवा / मदद करने (देख-भाल करना) वाली बहुत नामी मुस्लिम संस्था हैं। दुकान मलिक ओर बूढ़े आदमी दोनों को यह बात अच्छी लगी।  दोनों (दुकान मलिक ओर बूढ़े आदमी)संस्था में  जाकर पैसे दिए ओर  कुछ विदेशी कानून कार्यवाही पूरी की।  बूढ़े आदमी समाधानी हो गये।  

बूढ़ा आदमी  अपने पोते  के साथ वापस अपने घर गये।  ३-४ हफ्तो के बाद दुकान मलिक को बूढ़े  आदमी के  पोते से पत्र आया  "अब्बाजान  पैगंबर वासी हो गये "