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Thursday, 25 March 2021

प्राबध - भाग्य



एक आदमी ने नारदमुनि से पूछा मेरे भाग्य में कितना धन है..
नारदमुनि ने कहा - विष्णु जी से पूछकर कल बताऊंगा..

नारदमुनि ने कहा- 1 रुपया रोज तुम्हारे भाग्य में है...

आदमी बहुत खुश रहने लगा...
उसकी जरूरते 1 रूपये में पूरी हो जाती थी...

एक दिन उसके मित्र ने कहा में तुम्हारे सादगी जीवन और खुश देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूं और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूँ...

आदमी ने कहा मेरी कमाई 1 रुपया रोज की है इसको ध्यान में रखना...
इसी में से ही गुजर बसर करना पड़ेगा तुम्हारी बहन को...

मित्र ने कहा कोई बात नहीं मुझे रिश्ता मंजूर है...
 
अगले दिन से उस आदमी की कमाई 11 रुपया हो गई...
 
उसने नारदमुनि को बुलाया की हे मुनिवर मेरे भाग्य में 1 रूपया लिखा है फिर 11 रुपये क्यो मिल रहे है...??
 
नारदमुनि ने कहा - तुम्हारा किसी से रिश्ता या सगाई हुई है क्या...??
 
हाँ हुई है...
 
तो यह तुमको 10 रुपये उसके भाग्य के मिल रहे है...
इसको जोड़ना शुरू करो तुम्हारे विवाह में काम आएंगे...
 
एक दिन उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी कमाई 31 रूपये होने लगी...
 
फिर उसने नारदमुनि को बुलाया और कहा है मुनिवर मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रूपये मिल रहे थे लेकिन अभी 31 रूपये क्यों मिल रहे है...
क्या मै कोई अपराध कर रहा हूँ...??
 
मुनिवर ने कहा- यह तेरे बच्चे के भाग्य के 20 रुपये मिल रहे है...
 
हर मनुष्य को उसका प्रारब्ध (भाग्य) मिलता है...
किसके भाग्य से घर में धन दौलत आती है हमको नहीं पता...
 
लेकिन मनुष्य अहंकार करता है कि मैने बनाया,,,मैंने कमाया,,,
मेरा है,,,
मै कमा रहा हूँ,,, मेरी वजह से हो रहा है...
 
हे प्राणी तुझे नहीं पता तू किसके भाग्य का खा कमा रहा है...!!!!!

Thursday, 7 February 2019

आपकी अनुमति के बिना कोई भी आपको दुखी नहीं कर सकता है - No One Can Make you Unhappy Without your Permission

जब तक हम ना चाहे हमे कोइ दुख नही दे सकता !!
किसी गाँवों में एक जेन मास्टर रहते थे। उनकी ख्याति पूरे देश में फैली हुई थी और दूर-दूर से लोग उनसे मिलने और अपनी समस्याओं का समाधान कराने आते थे। 

एक दिन की बात है मास्टर अपने एक अनुयायी के साथ प्रातः काल सैर कर रहे थे कि अचानक ही एक व्यक्ति उनके पास आया और उन्हें भला-बुरा कहने लगा। 

उसने पहले मास्टर के लिए बहुत से अपशब्द कहे , पर बावजूद इसके मास्टर मुस्कुराते हुए चलते रहे। मास्टर को ऐसा करता देख वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और उनके पूर्वजों तक को अपमानित करने लगा। पर इसके बावजूद मास्टर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते रहे। 

मास्टर पर अपनी बातों का कोई असर ना होते हुए देख अंततः वह व्यक्ति निराश हो गया और उनके रास्ते से हट गया।

उस व्यक्ति के जाते ही अनुयायी ने आश्चर्य से पूछा,” मास्टर आपने भला उस दुष्ट की बातों का जवाब क्यों नहीं दिया ,और तो और आप मुस्कुराते रहे ,क्या आपको उसकी बातों से कोई कष्ट नहीं पहुंचा ?”
जेन मास्टर कुछ नहीं बोले और उसे अपने पीछे आने का इशारा किया।
कुछ देर चलने के बाद वे मास्टर के कक्ष तक पहुँच गए।
मास्टर बोले , ” तुम यहीं रुको मैं अंदर से अभी आया। “

मास्टर कुछ देर बाद एक मैले कपड़े लेकर बाहर आये और उसे अनुयायी को थमाते हुए बोले , ” लो अपने
कपड़े उतारकर इन्हे धारण कर लो ?”कपड़ों से अजीब सी दुर्गन्ध आ रही थी और अनुयायी ने उन्हें हाथ में लेते ही दूर फेंक दिया।

मास्टर बोले , ” क्या हुआ तुम इन मैले कपड़ों को नहीं ग्रहण कर सकते ना ?
ठीक इसी तरह मैं भी उस व्यक्ति द्वारा फेंके हुए अपशब्दों को नहीं ग्रहण कर सकता।

इतना याद रखो कि यदि तुम किसी के बिना मतलब भला-बुरा कहने पर स्वयं भी क्रोधित हो जाते हो तो इसका अर्थ है कि तुम अपने साफ़-सुथरे वस्त्रों की जगह उसके फेंके फटे-पुराने मैले कपड़ों को धारण कर रहे हो।

Sunday, 27 January 2019

संघर्ष - Struggle

संघर्ष - Struggle


एक बार एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया !

कभी बाढ़ आ जाये, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जाये!
हर बार कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी ख़राब हो जाये! एक दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा ,देखिये प्रभु,आप परमात्मा हैं , लेकिन लगता है आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है ,एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये , जैसा मै चाहू वैसा मौसम हो,फिर आप देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा!

परमात्मा मुस्कुराये और कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा!
किसान ने गेहूं की फ़सल बोई ,जब धूप चाही ,तब धूप मिली, जब पानी चाही तब पानी मिला ! तेज धूप, ओले,बाढ़ ,आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी,क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी ! किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, की फ़सल कैसे करते हैं ,बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान करते रहे.।

फ़सल काटने का समय भी आया ,किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा ,एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया! गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था ,सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी, बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा ,प्रभु ये क्या हुआ ?

तब परमात्मा बोले,” ये तो होना ही था ,तुमने पौधों को संघर्ष का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया . ना तेज धूप में उनको तपने दिया , ना आंधी ओलों से जूझने दिया ,उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया , इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पोधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वो ही उसे शक्ति देता है ,उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है.सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने , हथौड़ी से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है,उसे अनमोल बनाती है !”

उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो ,चुनौती ना हो तो आदमी खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता ! ये चुनोतियाँ ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं ,उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनोतियाँ तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे. अगर जिंदगी में प्रखर बनना है,प्रतिभाशाली बनना है ,तो संघर्ष और चुनोतियो का सामना तो करना ही पड़ेगा 

Friday, 4 January 2019

दुःख का स्वाद - Flavour of Sadness

एक बार एक नवयुवक किसी संत के पास पहुंचा .और बोला
 “ महात्मा जी , मैं अपनी ज़िन्दगी से बहुत परेशान हूँ , कृपया इस परेशानी से निकलने का उपाय बताएं

संत बोले , “ पानी के ग्लास में एक मुट्ठी नमक डालो और उसे पीयो .”
युवक ने ऐसा ही किया .
“ इसका स्वाद कैसा लगा ?”, संत ने पुछा।
“ बहुत ही खराब … एकदम खारा .” – युवक थूकते हुए बोला .

संत मुस्कुराते हुए बोले , “एक बार फिर अपने हाथ में एक मुट्ठी नमक ले लो और मेरे पीछे -पीछे आओ .
“दोनों धीरे -धीरे आगे बढ़ने लगे और थोड़ी दूर जाकर स्वच्छ पानी से बनी एक झील के सामने रुक गए .

“ चलो , अब इस नमक को पानी में दाल दो .” ,संत ने निर्देश दिया। युवक ने ऐसा ही किया .

“ अब इस झील का पानी पियो .” , संत बोले
युवक पानी पीने लगा.

एक बार फिर संत ने पूछा ,: “ बताओ इसका स्वाद कैसा है , क्या अभी भी तुम्हे ये खारा लग रहा है ?”
“नहीं , ये तो मीठा है , बहुत अच्छा है ”, युवक बोला .

संत युवक के बगल में बैठ गए और उसका हाथ थामते हुए बोले , “ जीवन के दुःख बिलकुल नमक की तरह हैं ; न इससे कम ना ज्यादा .
जीवन में दुःख की मात्रा वही रहती है , बिलकुल वही . लेकिन हम कितने दुःख का स्वाद लेते हैं ये इस पर निर्भर करता है कि हम उसे किस पात्र में डाल रहे हैं .
इसलिए जब तुम दुखी हो तो सिर्फ इतना कर सकते हो कि खुद को बड़ा कर लो… ग्लास मत बने रहो झील बन जाओ .

Saturday, 29 September 2018

मन का जहर - Poison in Heart

नयी नवेली बहु अपने सास के साथ रोज के झगड़े से परेशान होती है |अपने पति को अलग रहने की बात करती हैं |लेकिन पति माँ की बीमारियों की कारन टाल देता हैं | 

बहु अपने पहचान के वैद्य के पास जाती है |और कहती हैं| "मुझे तकलीफ से बचाने के लिये आप मुझे कोई जहर दे दो " जिससे  मेरी सास मर जाये| 


मन  का जहर


बहुत सोच विचार के बाद कहते हैं की"मैं तुम्हे कुछ वनस्पति देता हूँ |

उसे रोज अपने सास के खाने में मिला देना लेकिन सास को इसका गुमान नहीं होना चाहिये| उनके लिये उनका स्वादिष्ट भोजन बनाना | उनकी अच्छी से सेवा करना| वोह कुछ भी बोले तुम अपने मन का नियंत्रण नहीं खोना |  

जहर का असर धीरे-धीरे होगा और तुम पैर कोई शक नहीं होगा| 

बहु ने अपना काम चालू किया|सास के झगड़े को नजरअंदाज करने लगी|दीर्घकालीन लोभ के चलते बहु चुपचाप रहती | 

वैद्य के कहनेनुसार बहु सास का मन जितने के लिये हर कोशिस करती|इसतरह छः मास गुजर जाते हैं और उसे क्रोध पर नियंत्रण रखने की आदत हो गयी | 
सास भी अपना गुस्सा त्याग कर बहु को बेटी समान पेश आने लगी | 

सास अपने बहु के लिये अच्छे गुणगान करने लगी | 

बहु वैद्य के पास जाकर कहने लगी|मेरी सास मेरी माँ बन गयी | वोह जाने नहीं चाहिये|जहर का असर निकलने के लिये  कुछ वनस्पति दे दो | 

वैद्यने कहा "जहर तो तुम्हारे मन में था | वोह तो निकल गया | 



Friday, 24 August 2018

दान का महत्व - Importance of Donation


एक लकड़हारा रात-दिन लकड़ियां काटता, मगर कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल पाता था।

एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात हो जाए, मेरी एक फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना।

कुछ दिनों बाद उसे वह साधु फिर मिला।
लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई तो साधु ने कहा कि- "प्रभु ने बताया हैं कि लकड़हारे की आयु 60 वर्ष हैं और उसके भाग्य में पूरे जीवन के लिए सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं। इसलिए प्रभु उसे थोड़ा अनाज ही देते हैं ताकि वह 60 वर्ष तक जीवित रह सके।"


समय बीता। साधु उस लकड़हारे को फिर मिला तो लकड़हारे ने कहा !
"ऋषिवर...!! अब जब भी आपकी प्रभु से बात हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।"
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अगले दिन साधु ने कुछ ऐसा किया कि लकड़हारे के घर ढ़ेर सारा अनाज पहुँच गया। 
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लकड़हारे ने समझा कि प्रभु ने उसकी फरियाद कबूल कर उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया हैं।
उसने बिना कल की चिंता किए, सारे अनाज का भोजन बनाकर फकीरों और भूखों को खिला दिया और खुद भी भरपेट खाया।
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लेकिन अगली सुबह उठने पर उसने देखा कि उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया हैं। उसने फिर गरीबों को खिला दिया। फिर उसका भंडार भर गया।

यह सिलसिला रोज-रोज चल पड़ा और लकड़हारा लकड़ियां काटने की जगह गरीबों को खाना खिलाने में व्यस्त रहने लगा।

कुछ दिन बाद वह साधु फिर लकड़हारे को मिला तो लकड़हारे ने कहा---"ऋषिवर ! आप तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, लेकिन अब तो हर दिन मेरे घर पाँच बोरी अनाज आ जाता हैं।"

साधु ने समझाया, "तुमने अपने जीवन की परवाह ना करते हुए अपने हिस्से का अनाज गरीब व भूखों को खिला दिया।
इसीलिए प्रभु अब उन गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहे हैं।"

किसी को भी कुछ भी देने की शक्ति हम में है ही नहीं, हम देते वक्त ये सोचते हैं, की जिसको कुछ दिया तो ये मैंने दिया!
दान, वस्तु, ज्ञान, यहाँ तक की अपने बच्चों को भी कुछ देते दिलाते हैं, तो कहते हैं मैंने दिलाया ।
हम कुछ नहीं देते !! वह उनके  नसीब का होता हैं!!!

Sunday, 22 July 2018

दो तरह के लोग - Two Type of People

हमारे करीब दो तरह के लोग हैं। पहले वो हैं जिन्होंने आपसे प्रेम के बदले कोई उम्मीद पाल रखा है। उनका लगाव और प्रेम किसी लोभ की बुनियाद पर टिका है।

वो आपका ख्याल रखते हैं,आपकी चिंता करते हैं तो कहीं न कहीं इन सबके पीछे उनका निहित स्वार्थ भी है कि आप भी बदले में उनके लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगे।

एक और कैटेगरी के लोग  हैं जिनका प्रेम हवाओं-नदियों और वृक्षों की तरह है। वो आपके क्यों करीब हैं वो खुद नहीं जानते हैं।

जैसे हवा बिन बहे नहीं रह सकती,वृक्ष बिना फल दिए नही रह सकता, वैसे वो भी बिना प्रेम के नहीं रह सकते हैं।

ऐसे लोग कम हैं,बहुत कम। 

कभी-कभार दो-चार की संख्या में अपने आस-पास दिखाई दे जाते हैं। इसे विडम्बना ही कहिये की हमारी नज़र में उनका कोई महत्व नहीं होता है। 

मुफ़्त की चीज के साथ समस्या यही है।।

लेकिन इस घोर प्रोफेशन के दौर में आप चाहते हैं कि आपके रिलेशन में इमोशन बचा रहे, तो ऐसे लोगों को पहचान कर किसी दिल की फाइल में सेव कर दीजिए।

ईश्वर न करे आपके साथ ऐसा हो लेकिन जब आपके पास बैंक बैलेंस न होगा,पावर और पहुँच खत्म हो जाएगी। संसार आसार नजर आने लगेगा। उस दिन यही लोग आपके काम आएंगे।

मुझे अब तक के अनुभव से यही लगा है कि इस जीवन में पैसे कमाना बहुत जरूरी है। लेकिन सच्चा रिश्ता कमान उससे भी ज्यादा जरूरी है। 

Tuesday, 3 July 2018

मै न होता तो क्या होता (भ्रम) - Illusion

एक बार हनुमानजी ने श्रीराम से कहा कि अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, 
किन्तु मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर मैं गदगद हो गया यदि मैं कूद पड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि मै न होता तो क्या होता ? 

मुझे लगता कि यदि मै न होता तो सीताजी को कौन बचाता ? 
परन्तु आपने उन्हें बचाने का काम रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। 
तब मै समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं!

आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है वह लंका जलायेगा तो मै बड़ी चिंता मे पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा नही है!

ब त्रिजटा कह रही है तो मै क्या करुं पर जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिये दौड़े तो मैंने बचने की तनिक भी चेष्टा नहीं की,और जब विभीषण ने कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो मै समझ गया कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने उपाय कर दिया !

आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर आग लगाई जाये तो मैं गदगद् हो गया कि उस त्रिजटा की बात सच थी, 

वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, कपड़ा लाता,कहां आग ढूंढता, वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया

इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ हो रहा है वह ईश्वरीय विधान है, हम-आप तो निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी ये भ्रम न पालें कि मै न होता तो क्या होता!

Friday, 15 June 2018

असली प्रशंसा

एक बार कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे,
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तभी बातों बातों में अर्जुन ने कृष्ण से कहा कि क्यों कर्ण को दानवीर कहा जाता है और उन्हें नहीं। जबकि दान हम भी बहुत करते हैं।
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यह सुन कर कृष्ण ने दो पर्वतों को सोने में बदल दिया,
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और अर्जुन से कहा कि वे उनका सारा सोना गाँव वालो के बीच बाट दें ।
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तब अर्जुन गाँव गए और सारे लोगों से कहा कि वे पर्वत के पास जमा हो जाएं क्योंकि वे सोना बांटने जा रहे हैं,
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यह सुन गाँव वालो ने अर्जुन की जय जयकार करनी शुरू कर दी और अर्जुन छाती चौड़ी कर पर्वत की तरफ चल दिए।
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दो दिन और दो रातों तक अर्जुन ने सोने के पर्वतों को खोदा और सोना गाँव वालो में बांटा । पर पर्वत पर कोई असर नहीं हुआ।
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इसी बीच बहुत से गाँव वाले फिर से कतार में खड़े होकर अपनी बारी आने का इंतज़ार करने लगे। अर्जुन अब थक चुके थे लेकिन अपने अहंकार को नहीं छोड़ रहे थे।
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उन्होंने कृष्ण से कहा कि अब वे थोड़ा आराम करना चाहते हैं और इसके बिना वे खुदाई नहीं कर सकेंगे ।
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तब कृष्ण ने कर्ण को बुलाया और कहा कि सोने के पर्वतों को इन गाँव वालों के बीच में बाट दें।
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कर्ण ने सारे गाँव वालों को बुलाया और कहा कि ये दोनों सोने के पर्वत उनके ही हैं और वे आ कर सोना प्राप्त कर लें । आैर एेसा कहकर वह वहां से चले गए।।
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अर्जुन भौंचक्के रह गए और सोचने लगे कि यह ख्याल उनके दिमाग में क्यों नहीं आया। 
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तब कृष्ण मुस्कुराये और अर्जुन से बोले कि तुम्हें सोने से मोह हो गया था
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और तुम गाँव वालो को उतना ही सोना दे रहे थे जितना तुम्हें लगता था कि उन्हें जरुरत है। इसलिए सोने को दान में कितना देना है इसका आकार तुम तय कर रहे थे।
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लेकिन कर्ण ने इस तरह से नहीं सोचा और दान देने के बाद कर्ण वहां से दूर चले गए । वे नहीं चाहते थे कि कोई उनकी प्रशंसा करे और ना ही उन्हें इस बात से कोई फर्क पड़ता था कि कोई उनके पीछे उनके बारे में क्या बोलता है।
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यह उस व्यक्ति की निशानी है जिसे आत्मज्ञान हासिल हो चुका है। दान देने के बदले में धन्यवाद या बधाई की उम्मीद करना उपहार नहीं सौदा कहलाता है।


अत: यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमें ऐसा बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए ताकि यह हमारा सत्कर्म हो ना कि हमारा अहंकार 

Wednesday, 16 May 2018

परेशानियाँ दूर करने वाला पेड़

परेशानियाँ दूर करने वाला पेड़
सरला नाम की एक महिला थी । रोज वह और उसके पति सुबह ही काम पर निकल जाते थे ।
दिन भर पति ऑफिस में अपना टारगेट पूरा करने की ‘डेडलाइन’ से जूझते हुए साथियों की होड़ का सामना करता था। बॉस से कभी प्रशंसा तो मिली नहीं और तीखी-कटीली आलोचना चुपचाप सहता रहता था ।
पत्नी सरला भी एक प्रावेट कम्पनी में जॉब करती थी । वह अपने ऑफिस में दिनभर परेशान रहती थी ।
ऐसी ही परेशानियों से जूझकर सरला लौटती है। खाना बनाती है।

शाम को घर में प्रवेश करते ही बच्चों को वे दोनों नाकारा होने के लिए डाँटते थे पति और बच्चों की अलग-अलग फरमाइशें पूरी करते-करते बदहवास और चिड़चिड़ी हो जाती है। घर और बाहर के सारे काम उसी की जिम्मेदारी हैं।

थक-हार कर वह अपने जीवन से निराश होने लगती है। उधर पति दिन पर दिन खूंखार होता जा रहा है। बच्चे विद्रोही हो चले हैं।

एक दिन सरला के घर का नल खराब हो जाता है । उसने प्लम्बर को नल ठीक करने के लिए बुलाया ।
प्लम्बर ने आने में देर कर दी। पूछने पर बताया कि साइकिल में पंक्चर के कारण देर हो गई। घर से लाया खाना मिट्टी में गिर गया, ड्रिल मशीन खराब हो गई, जेब से पर्स गिर गया...।
इन सब का बोझ लिए वह नल ठीक करता रहा।

काम पूरा होने पर महिला को दया आ गई और वह उसे गाड़ी में छोड़ने चली गई।
प्लंबर ने उसे बहुत आदर से चाय पीने का आग्रह किया।

प्लम्बर के घर के बाहर एक पेड़ था। प्लम्बर ने पास जाकर उसके पत्तों को सहलाया, चूमा और अपना थैला उस पर टांग दिया।

घर में प्रवेश करते ही उसका चेहरा खिल उठा। बच्चों को प्यार किया, मुस्कराती पत्नी को स्नेह भरी दृष्टि से देखा और चाय बनाने के लिए कहा।

सरला यह देखकर हैरान थी। बाहर आकर पूछने पर प्लंबर ने बताया - यह मेरा परेशानियाँ दूर करने वाला पेड़ है। मैं सारी समस्याओं का बोझा रातभर के लिए इस पर टाँग देता हूं और घर में कदम रखने से पहले मुक्त हो जाता हूँ। चिंताओं को अंदर नहीं ले जाता।

सुबह जब थैला उतारता हूं तो वह पिछले दिन से कहीं हलका होता है। काम पर कई परेशानियाँ आती हैं, पर एक बात पक्की है- मेरी पत्नी और बच्चे उनसे अलग ही रहें, यह मेरी कोशिश रहती है। इसीलिए इन समस्याओं को बाहर छोड़ आता हूं। प्रार्थना करता हूँ कि भगवान मेरी मुश्किलें आसान कर दें। मेरे बच्चे मुझे बहुत प्यार करते हैं, पत्नी मुझे बहुत स्नेह देती है, तो भला मैं उन्हें परेशानियों में क्यों रखूँ । उसने राहत पाने के लिए कितना बड़ा दर्शन खोज निकाला था...!

यह घर-घर की हकीकत है। गृहस्थ का घर एक तपोभूमि है। सहनशीलता और संयम खोकर कोई भी इसमें सुखी नहीं रह सकता। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं, हमारी समस्याएं भी नहीं। प्लंबर का वह ‘समाधान-वृक्ष’ एक प्रतीक है। 

Monday, 16 April 2018

कमियाँ नज़र अंदाज़ करें - Ignore the Weakness

एक बार की बात है किसी राज्य में एक राजा था जिसकी केवल एक टाँग और एक आँख थी। उस राज्य में सभी लोग खुशहाल थे क्योंकि राजा बहुत बुद्धिमान और प्रतापी था।

एक बार राजा के विचार आया कि क्यों न खुद की एक तस्वीर बनवायी जाये। फिर क्या था, देश विदेशों से चित्रकारों को बुलवाया गया और एक से एक बड़े चित्रकार राजा के दरबार में आये। राजा ने उन सभी से हाथ जोड़कर आग्रह किया कि वो उसकी एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनायें जो राजमहल में लगायी जाएगी।

सारे चित्रकार सोचने लगे कि राजा तो पहले से ही विकलांग है फिर उसकी तस्वीर को बहुत सुन्दर कैसे बनाया जा सकता है, ये तो संभव ही नहीं है और अगर तस्वीर सुन्दर नहीं बनी तो राजा गुस्सा होकर दंड देगा। यही सोचकर सारे चित्रकारों ने राजा की तस्वीर बनाने से मना कर दिया। तभी पीछे से एक चित्रकार ने अपना हाथ खड़ा किया और बोला कि मैं आपकी बहुत सुन्दर तस्वीर बनाऊँगा जो आपको जरूर पसंद आएगी।

फिर चित्रकार जल्दी से राजा की आज्ञा लेकर तस्वीर बनाने में जुट गया। काफी देर बाद उसने एक तस्वीर तैयार की जिसे देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और सारे चित्रकारों ने अपने दातों तले उंगली दबा ली।

उस चित्रकार ने एक ऐसी तस्वीर बनायीं जिसमें राजा एक टाँग को मोड़कर जमीन पे बैठा है और एक आँख बंद करके अपने शिकार पे निशाना लगा रहा है। 
राजा ये देखकर बहुत प्रसन्न हुआ कि उस चित्रकार ने राजा की कमजोरियों को छिपा कर कितनी चतुराई से एक सुन्दर तस्वीर बनाई है। 
राजा ने उसे खूब इनाम दिया।
क्यों ना हम भी दूसरों की कमियों को छुपाएँ, उन्हें नजरअंदाज करें और अच्छाइयों पर ध्यान दें।

Sunday, 11 March 2018

सत्संग की क्या जरूरत है ?

सत्संग की क्या जरूरत है ?
मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है ?एक बार एक युवक पुज्य कबीर साहिब
जी के पास आया और कहने लगा, ‘गुरु महाराज!
मैंने अपनी शिक्षा से पर्याप्त ज्ञान ग्रहण कर लिया है।
मैं विवेकशील हूं और अपना अच्छा-बुरा भली-भांति समझता हूं, किंतु फिर भी मेरे
माता-पिता मुझे निरंतर सत्संग की सलाह देते रहते हैं।
जब मैं इतना ज्ञानवान और विवेकयुक्त हूं,तो मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है?’


कबीर ने उसके प्रश्न का मौखिक उत्तर न देते हुए एक हथौड़ी उठाई
और पास ही जमीन पर गड़े एक खूंटे पर मार दी। युवक अनमने भाव से चला गया अगले
दिन वह फिर कबीर के पास आया और बोला, ‘मैंने आपसे कल एक प्रश्न पूछा था, किंतु अापने उत्तर नहीं
दिया।
क्या आज आप उत्तर देंगे?’
कबीर ने पुन: खूंटे के ऊपर हथौड़ी मार दी। किंतु बोले कुछ नहीं। युवक ने सोचा कि संत पुरुष हैं, शायद आज
भी मौन में हैं वह तीसरे दिन फिर आया और अपना प्रश्न दोहराया। कबीर ने फिर से खूंटे पर
हथौड़ी चलाई।
अब युवक परेशान होकर बोला,‘आखिर आप मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं?
मैं तीन दिन से आपसे प्रश्न पूछ रहा हूं।’ तब कबीर ने कहा, ‘मैं तो तुम्हें रोज जवाब दे रहा हूं।
मैं इस खूंटे पर हर दिन हथौड़ी मारकर जमीन में इसकी पकड़ को मजबूत कर रहा हूं। यदि मैं ऐसा नहीं करूंगा तो इससे बंधे पशुओं द्वारा खींचतान से या किसी की ठोकर लगने से अथवा जमीन में थोड़ी सी हलचल होने पर यह निकल जाएगा।
यही काम सत्संग हमारे लिए करता है। वह हमारे मनरूपी खूंटे पर निरंतर प्रहार करता है, ताकि
हमारी पवित्र भावनाएं दृढ़ रहें। युवक को कबीर ने सही दिशा-बोध करा दिया। सत्संग हररोज नित्यप्रति हृदय में सत् को दृढ़ कर असत् को मिटाता है, इसलिए सत्संग हमारी जीवन चर्या का अनिवार्य अंग होना चाहिए।

Thursday, 8 February 2018

आभार भगवान के प्रति - Thanks To GOD



एक बार कबीरदास जी हरि भजन करते एक गली से निकल रहे थे।
उनके आगे कुछ स्त्रियां जा रही थीं ।
उनमें से एक स्त्री की शादी कहीं तय हुई होगी तो उसके ससुरालवालों ने शगुन में एक नथनी भेजी थी ।
वह लड़की अपनी सहेलियों को बार-बार नथनी के बारे में बता रही थी कि नथनी ऐसी है वैसी है
ये ख़ास उन्होंने मेरे लिए भेजी है.!
बार बार बस नथनी की ही बात...
उनके पीछेे चल रहे कबीरजी
के कान में सारी बातें पड़ रही थी ।
तेजी से कदम बढाते कबीर उनके पास से निकले और कहा-
"नथनी दीनी यार ने,
तो चिंतन बारम्बार, और
नाक दिनी जिस करतार ने,
उनको तो दिया बिसार.."
सोचो यदि नाक ही ना होती तो
नथनी कहां पहनती !
यही जीवन में हम भी करते हैं।
भौतिक वस्तुओं का तो हमें ज्ञान रहता है 

परंतु जिस परमात्मा ने यह दुर्लभ मनुष्य देह दी और इस देह से संबंधित सारी वस्तुऐं, सभी रिश्ते-नाते दिए, उसी को याद करने के लिए हमारे पास समय नहीं होता !

Saturday, 2 December 2017

हर समस्या का उचित इलाज आत्मा की आवाज है - Solution of Every Problem :- Voice of the Soul

Voice of the  Soul

राजा ने एक सुंदर सा महल बनाया । और महल के मुख्य द्वार पर एक गणित का सूत्र लिखवाया | 
और घोषणा की की इस सूत्र से यह द्वार खुल जाएगा और जो भी सूत्र को हल कर के द्वार खोलेगा में उसे अपना उत्तराधीकारी घोषित कर दूंगा......

राज्य के बड़े बड़े गणितज्ञ आये और सूत्र देखकर लोट गए किसी को कुछ समझ नहीं आया ........
आख़री तारीख आ चुकी | 

उस दिन 3 लोग आये और कहने लगे हम इस सूत्र को हल कर देंगे 
उसमे 2 तो दूसरे राज्य के बड़े गणितज्ञ अपने साथ बहुत से पुराने गणित के सूत्रो की किताबो सहित आये | 

लेकिन एक व्यक्ति जो साधक की तरह नजर आ रहा था सीधा साधा कुछ भी साथ नहीं लाया उसने कहा में बेठा हु यही पास में ध्यान कर रहा हु | 
अगर पहले ये दोनों महाशय कोशीस कर के 
द्वार खोल दे तो मुझे कोई परेशानी नहीं| 

पहले इन्हें मोका दिया जाए
दोनों गहराई से सूत्र हल करने में लग गए| 
लेकिन नहीं कर पाये और हार मान ली| 
अंत में उस साधक को ध्यान से जगाया गया और कहा की आप सूत्र हल करिये ऑप का समय शुरू हो चुका हे|

साधक ने आँख खोली और सहज मुस्कान के साथ द्वार की और चला द्वार को धकेला और यह क्या द्वार खुल गया|

राजा ने साधक से पूछा आप ने ऐसा क्या किया| 
साधक ने कहा जब में ध्यान में बेठा तो सबसे पहले अंतर्मन से आवाज आई की पहले चेक कर ले की सूत्र हे भी या नहीं | 
इसके बाद इसे हल करने की सोचना
और मेने वाही किया
ऐसे ही कई बार जिंदगी में समस्या होती ही नहीं 
और हम विचारो में उसे इतनी बड़ी बना लेते हे की वह समस्या कभी हल न होने वाली हे| 

लेकिन हर समस्या का उचित इलाज आत्मा की आवाज है।

Friday, 13 October 2017

द्रष्टि नहीं द्रष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिए(Think Positive)

द्रष्टि नहीं द्रष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिए
गुरू से शिष्य ने कहा: गुरूदेव ! एक व्यक्ति ने आश्रम के लिये गाय भेंट की है।
गुरू ने कहा - अच्छा हुआ । दूध पीने को मिलेगा।

*एक सप्ताह बाद शिष्य ने आकर गुरू से कहा: गुरू ! जिस व्यक्ति ने गाय दी थी, आज वह अपनी गाय वापिस ले गया ।

गुरू ने कहा - अच्छा हुआ ! गोबर उठाने की झंझट से मुक्ति मिली।
परिस्थिति' बदले तो अपनी 'मनस्थिति' बदल लो। बस दुख सुख में बदल जायेगा.।

*"सुख दुख आख़िर दोनों मन के ही तो समीकरण हैं।*

*"अंधे को मंदिर आया देखलोग हँसकर बोले -"मंदिर में दर्शन के लिए आए तो हो,पर क्या भगवान को देख पाओगे ?*

*"अंधे ने कहा -"क्या फर्क पड़ता है,मेरा भगवान तो मुझे देख लेगा."*

*द्रष्टि नहीं द्रष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिए।*

Tuesday, 29 August 2017

लक्ष्य के लिये धैर्य जरुरी (To Achieve Goal We Need Patience)

एक बार गुरु को अपना उत्तराधिकारी चुनना था। इसीकेलिये गुरु को अपने अनेक शिष्यों में से किसी एक को चुनना था। उन्होंने परीक्षा  करनी थी। 

गुरु ने अपने सभी शिष्योंको बुलाकर दिवार बनाने कहा। सभी शिष्य काम पर लगे । जल्द ही उन्होंने एक दिवार बनाई। गुरुने उस दिवार को तोड़ कर फिर से बनाने को कहा। 
Patience

दिवार बनानी और उसे तोडना ऐसा बहुत बार हो गया। धीरे -धीरे  सभी शिष्य परेशान हो गये और दिवार बनाना छोड़ दिये। 

लेकिन चित्रभानु नामक शिष्य काम करने लगा। गुरु उसके पास आकर बोले "तुम्हारे सारे मित्र काम छोड़ कर चले गए" लेकिन तुम अब भी काम कर रहे हो। 

चित्रभानु हात जोड़कर बोला"मैं गुरु कीआज्ञा कैसे भंग करु?जब तक 
आप रोकोगे नहीं तब तक मै काम करते रहूंगा। 

गुरु  बहुत आनंदित हो गये। अपने खोज पूर्ण हो गयी ऐसे उन्हें लगा। 

उसे अपना उत्तराधिकारी चुन लिया। 
शिष्योंसे बोले"संसारमें बहुत लोग बड़ी बड़ी इच्छा रखते हैं।और 
उच्चतमपद पाने की इच्छा रखते हैं। 


लेकिन उसे पाने की पात्रता प्राप्त करने की प्रयत्न नहीं करते।या थोड़ा फार 
प्रयत्न करके हार मानते हैं। 
कोई भी लक्ष्य पाने के लिये इच्छा के साथ धैर्य जरुरी हैं। 


Sunday, 28 May 2017

जो देना जानता है (Who Knows To Give)

जो देना जानता है  (Who Knows To Give)


एक आदमी ने गुरू नानक से पूछा: मैं इतना गरीब क्यों हूँ....?

गुरू नानक ने कहा: तुम गरीब हो क्योंकि तुमने देना नहीं सीखा....

आदमी ने कहा: परन्तु मेरे पास तो देने के लिए कुछ भी नहीं है

गुरू नानक ने कहा:
तुम्हारा चेहरा, एक मुस्कान दे सकता है..
तुम्हारा मुँह, किसी की प्रशंसा कर सकता है या दूसरों को सुकून पहुंचाने के लिए दो मीठे बोल बोल सकता है.. 
तुम्हारे हाथ, किसी ज़रूरतमंद की सहायता कर सकते हैं.. 
और तुम कहते हो तुम्हारे पास देने के लिए कुछ भी नहीं..!! 
आत्मा की गरीबी ही वास्तविक गरीबी है..

पाने का हक उसी को है..
जो देना जानता है..

Sunday, 26 February 2017

इंसान की पहचान (How To Know Human)

एक दिन राजा ने दरबार खुले मैदान में  आयोजन किया। सुबह के ताजे सूरज में लोग बैठे थे।


How To Know Human




उस समय वहा पर दूसरे राज्य से एक  आदमी आता हैं।
वह  राजा को  कहता है ,"मेरे पास  दो चीजे हैं।  उनमें  एक असली और एक नकली है। मैं अबतक बहुत सारे राज्य में घूम आया लेकिन किसी ने भी असली चीज़ नहीं पहचानी। 

अगर वह असली चीज आप के राज्य में किसी ने पहचानी  तो वह में आप के खजाने में जमा करूंगा।
लेकिन अगर किसी ने वह असली चीज नहीं पहचानी तो उसके मूल्य का धन आप मुझे देंगे।
आज तक यह चुनौती कोई नहीं जीता है। "


 दरबारके लोगो में उत्सुक होते है। अंत में राजा तैयार होता है। राजा के सामने वह आदमी अपने थैले से दो चीजे निकाल कर रख देता हैं। दोनों चीजे दिखने में एक जैसी होती हैं। एक ही रंग, एक ही आकार, एक ही प्रकाश !!
राजा का कहना है, "क्या यह मुश्किल है। वे दोनों जवाहरात हैं, दोनों भी हिरा हैं।" 
वह आदमी कहता हैं ,"नहीं, राजन, एक एक असली हीरा है, और ग्लास का एक टुकड़ा है।"
अब सब लोग चकित हो जाते है। आगे आकर बहुत लोग निरीक्षण करते है कोई भी असली /नकली नहीं पहचान सकता था।
अंत में राजा भी प्रयत्न करता है। वोह भी हार जाता है। और राजा असली हिरे के मूल्य का धन उस आदमी को देने के लिए विवस हो जाता है। 

उसी समय लोगो में से एक अंध मनुष्य कहता है ,"राजन ,हम तो हार गये है। तब मुझे एक अंतिम मौका देते हैं। लेकिन अगर आप जीता और खो दिया है माया का लाभ आप पैसे देने के लिए सहमत हो गया है "

राजा थोड़े देर सोचने के पश्च्यात उस अंध व्यक्ति को अनुमति दे देता हैं। 
वह अंध व्यक्ति दूसरे आदमी के मदत से आगे आकर दोनों चीजो से हाथ घुमाकर एक ही क्षण में "असली नकली की पहचान करता है। 
सभी चकित हैं। विशेष रूप से, वह भी चकित था। क्योंकि जो कार्य कोई भी नहीं कर पाया वोह अंध आदमी में ने कर दिखाया। 
अंत में वह आदमी असली हिरा राजा को देता हैं और उस अंध आदमी से पूछ था हैं ,"तुमने यह कैसे किया ?"

अंध व्यक्ति बोला ,"यह आसान था। मैंने देखा कि उसके हाथ में एक ठंड से एक है, और दूसरा गर्म था! यह अच्छा था कि वह एक नकली हीरा था, और है कि गर्म था, क्योंकि गिलास गर्म ज्यादा था। एक हीरे के रूप में ज्यादा गर्म नहीं है। " 
जो समय -समय पर गुस्सा हो जाते है वह काच समान होते है।  
जो विपरीत परिस्थितीमें शांत रहते है वो हिरे के समान होते है। 

Friday, 13 January 2017

प्रेरित (Motivation)

प्रेरित

कैसे सदा  प्रेरित रहे।  
कोनसा जानवर जंगल में  सबसे बड़ा है?
मैंने सुना है कि आप कहते हैं, हाथी।

कोनसा जानवर जंगल में  सबसे लंबा है?
मैंने सुना है कि आप कहते हैं, जिराफ

कोनसा जानवर जंगल में  सबसे बुद्धिमान है
मैंने सुना है कि आप कहते हैं, लोमड़ी।

कोनसा जानवर जंगल में  सबसे  तेज है?
मैंने सुना है कि आप कहते हैं, चीता

इन सभी गुणों में  शेर  कहाँ  हैं ?
फिर भी, आप कहते हैं कि शेर भी शोध के गुणों के बिना किसी भी जंगल का राजा है। !!
क्यों ?

क्योंकि ...
शेर साहसी है,
शेर बहुत बोल्ड है,
शेर हमेशा की तरह, किसी भी बाधा किया था चाहे कितना बड़ा / बुरा वे अपने पथ, पार किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है !!
 

शेर विश्वास के साथ चलता है। शेर कुछ भी हिम्मत और डर नहीं है। शेर मानना है कि वह अजेय है। शेर है एक जोखिम लेने वाला। शेर का मानना है कि किसी भी जानवर उसके लिए खाना है। शेर का मानना है कि किसी भी अवसर के लिए एक कोशिश दे रही है और कभी नहीं लायक है

यह उसके हाथ से पर्ची की सुविधा देता है। शेर करिश्मा है। !!
 


तो  हमने  शेर से  क्या  सिखा ?
  • आप सबसे तेजी से होने की जरूरत नहीं है।
  • आप बुद्धिमान होने की जरूरत नहीं है।
  • आप चतुर होने की जरूरत नहीं है।
  • आप सबसे प्रतिभाशाली होने की जरूरत नहीं है।
  • आप अपने सपनों को प्राप्त करने और जीवन में महान बनने के लिए आम तौर पर स्वीकार किए जाने की जरूरत नहीं है। !!
  • आप को  जरूरत है साहस की * *   
  • आप को आवश्यकता होगी की कोशिश करते रहे 
  • आप सभी की जरूरत विश्वास है कि यह संभव है कि विश्वास करने के लिए है
  • आप सभी की जरूरत है अपने आप में विश्वास है, कि तुम * * यह कर सकते हैं। !!
  • यह समय आप के अंदर के शेर को बाहर लाने का हैं।  

हमेशा प्रेरित रहे । स्वामी विवेकानंद 

Friday, 9 December 2016

कोशिश करते रहो (Try and Try)

एक युवा किसान पहाड़ के ऊपरबसे भगवान के दर्शन हेतु चला जाता हैं। 
मंदिर का रास्ता लंबा नहीं था। लेकिन खेती के काम के कारण किसान को फुरसत ही नहीं मिलती। 
दिन भर का काम ख़त्म होते ही उसने रोटी लिये और अपने के दोस्त से लालटेन मांग कर निकल पड़ा पहाड़ पर। 

रात में ही गाँव की सीमा पार की। अमावास की रात के कारण पूरा अँधेरा था। 

कोशिश करते  रहो
किसान पहाड़ी के निचे आकर बैठ गया। हात्त में लालटेन थी लेकिन उसकी रोशनी सिर्फ दस कदम ही थी। किसान ने सोचा रात भर यही बैठ कर सुबह होते ही निकल पड़े अपनी यात्रा के लिये। 

उसी समय किसी की आने की आहट सुनाई दीकिसान पट से उठकर खड़ा रहा और अँधेरे में देख ने लगा। 

तभी उसने देखा की एक बूढा व्यक्ति उसकी तरफ आ रहा थाबूढा व्यक्ति के हाथ में लालटेन थी। 

युवा किसान बोला,सुबह होने की राह देख रहा हूँ। होते ही मैं पहाड़ी के मंदिर दर्शन के लिये चला जाऊँगा। 

बूढा व्यक्ति ने कहा,जब तूने पहाड़ चढ़ ने ठान ली है तो सुबह की राह क्यों देख रहे हो। लालटेन तो आप के पास हैं तो पहाड़ी के निचे क्यों बैठे हो ?

किसान बोला,अँधेरा तो बहुत हैं,लालटेन से सिर्फ दस कदम का आगे का दिख सकता हैं। 
बूढा व्यक्तिने  हँसकर कहा,तुम पहले दस कदम तो आगे बढावो,जितना दिखेगा उतना आगे बढ़ो।जैसे जैसे तुम चलोगे वैसे तुम्हे आगे का दिखने लगेगा। 

बूढा व्यक्ति की बात युवा किसान को समझ आयी। युवा किसान उठकर चलने लगा और सुबह के पहले मंदिर में पहुँच गया। 

जो रुक गया वह समाप्त हो गया। जो चलता रहता हैं वह मंज़िल पा लेता हैं।चलने वाले को आगे का रास्ता दिख जाता हैं। 
हर एक व्यक्ति के पास दस कदम चलने लायक ज्ञान और प्रकाश होता हैं।