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Friday, 3 August 2018

भाग्य - LUCK

भगवान ने नारद जी से कहा आप भ्रमण करते रहते हो कोई ऐसी घटना बताओ जिसने तम्हे असमंजस मे डाल दिया हो...
नारद जी ने कहा प्रभु अभी मैं एक जंगल से आ रहा हूं, वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने वाला नहीं था।

तभी एक चोर उधर से गुजरा, गाय को फंसा हुआ देखकर भी नहीं रुका, उलटे उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर निकल गया। 

आगे जाकर उसे सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिल गई। 

थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा। उसने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश की। 

पूरे शरीर का जोर लगाकर उस गाय को बचा लिया लेकिन मैंने देखा कि गाय को दलदल से निकालने के बाद वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया और उसे चोट लग गयी । 

भगवान बताइए यह कौन सा न्याय है।

भगवान मुस्कुराए, फिर बोले नारद यह सही ही हुआ। 
जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था, उसकी किस्मत में तो एक खजाना था लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरे ही मिलीं।

वहीं उस साधु को गड्ढे में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उसके भाग्य में मृत्यु लिखी थी लेकिन गाय के बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसकी मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गई। 

इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है। अब नारद जी संतुष्ट थे |

Saturday, 24 June 2017

भोजन का स्वाद (Taste of Food)

एक बार एक राजा ने अपने राज्य के अच्छे संत को अपने राजमहल में भोजन के लिए आग्रह किया जिसे संत ने स्वीकार कर लिया।

संत का भोजन जो रसोइया बना रहा था, वह लालची था।जहाँ वह भोजन बना रहा था उसके सामने वाली खिड़की पर रानी का नौलाखा हार टंगि हुआ था।


 भोजन का स्वाद

वहाँ बार बार उसकी दृष्टी जाती थी और उसके मन में विचार आता कि कैसे भी मौका मिले तो मैं इस हार को चुरा लूँ , लेकिन वह उसे चुराने में सफल न हो सका।


इन चोरी के विचारों में उसने भोजन बनाया और संत ने उसे खाया तो पता है क्या हुआ ? .... 

संत के मन में भी चोरी के विचार आने लगे।और जाते - जाते रानी का नौलखा हार लेकर चलता बना।

इस पर किसी ने ध्यान भी नहीं दिया।सुबह सारा राजमहल छान मारा और हार नहीं मिला।

उधर संत जब अपनी कुटिया में पहुँचे, अगले दिन भोजन का असर कम हुआ तो उनकी हैरानी हुई कि मैं इतना त्यागी,तपस्वी संत, यह मैंने क्या किया ? तपस्वी को समझ आ गया ।उसने राजा को बुलाया और कहा कि मेरा भोजन जिस रसोइये ने बनाया था उसे बुलाये ।रसोइये को बुलाकर जब सख्ती से पूछा गया तो उसने सारी बातें सच - सच बता दी कि उसके मन में हार की चोरी के विचार थे।


अब संत ने राजा को वह हार दिया और कहा कि महाराज देखा आपने ,अन्न का मन पर कितना असर पड़ता है।

इस रसोइये ने चोरी के विचारों से भोजन बनाया तो उसे खाकर मेरे जैसे संत के विचार भी खराब हो गये तो एक साधारण मनुष्य पर इसका कितना असर होता।

Friday, 20 November 2015

हीरों का क्या मोल ? Value of Diamonds

संत  कबीर का बेटा कमाल बहुत अच्छे सुरीले शब्द में कीर्तन करता  था।  कबीर  भी मन लगाकर कीर्तन सुनते थे। बहुत बार कमाल कीर्तन मे दंग  रहते ओर कबीर उनके पीछे उनको साथ देते थे। 

पिताजी की अनुमती  लेकर कमाल  एक दिन द्वारका नगरी चले गये। रात्र समय कमाल किसी गाँव में किसी के घर रहते  और वही पर कीर्तन की सुरुवात करते थे। उनके कीर्तन की अच्छे सुरीले शब्द/बोली  सब श्रोतो  के  लिये मुख्य विषय होता था। उनका कीर्तन सुनने  लिये  बहुत  आते थे।  जो  भी गाँव वोह जाते थे लोग उनका सत्कार  करते थे।  आखिर वोह   एक दिन द्वारका पहुँच गये। 




नदी में स्नान किया और मंदिर जाकर पूजा,आरती  कियी। कृष्णकनिया की मूर्ति के सामने अपने भक्ति रचना गाते थे।  उनका द्वारका में यही दिनचर्या होती थी।  चार मास पश्च्यात वोह फिर अपने गाँव निकल पड़े।  रास्ते में चित्रकूट नगरी में ठहर गये। 

उधर के विष्णुदास सावकार कमाल को प्रेमसे घर ले गये। रात्र को उनको कीर्तन उन्होंने सुना ,सभी लोग आस्चर्यचकित हो गये।  सावकार ने अपने संपत्ति से एक हिरा कमाल को दे दिया। 

कमाल बोले "मैं यह हिरा नहीं ले  सकता ,मेरे पिताजी को अच्छा नहीं लगता। " हमारे लिये  हिरा और पत्थर दोनों समान हैं।  आप मुझे यह हिरा क्योँ  दे रहे हो ?

सावकार बोले "कीर्तन  कहने वालो को कुछ द्रव्य देना जरुरी हैं। 

फिर कमाल बोले "द्वारका में कृष्णा देखा,उसके सामने हीरों  का क्या मोल?

Friday, 23 October 2015

अच्छाई में परमेश्वर -

एक  बार एक योगी अपने सात शिस्यों को लेकर एक गाँव  से दूसरे  गाँव यात्रा कर रहे थे।  रास्ता एक कच्ची सड़क जो खेतोँ को लग कर जा रही थी।  खेतोँ  में एक-डेढ़  मास हो गया था। एक जगह पर एक (सातवां)शिष्य  बहुत पीछे  रह गया। वह योगी और बाकी छह  शिष्य बहुत आगे निकल गये।

सातवां शिष्य कच्ची सड़क से न जाते वह खेतों के  बीच से उनके साथ जाने हेतु  निकल गया। खेत के उस पार किसान डंडा लेकर बैठा था।  वह भागकर पीछे रहे शिष्यके पास आया तब तक शिष्य अपने योगी और अन्य शिस्योंके पास पहुँच गया। उसी समय वह किसान उधर  आ गया। और वह उलटा -सीधा बहुत कुछ  सातवे शिष्य को बोलने लगा। 



सातवे शिष्यने  अपने गुरु के  पास देखकर बड़े विनम्रता हाथ जोड़कर बोला "मेरे से जो गलती हुयी है उसके लिये  आप मुझे माफ़ कर दो "। वह किसान बिना  सौजन्य दिखाये  ओर जोरसे उलटा सातवे शिष्य को  बोलने लगा।  सातवां शिष्य अपने हाथ जोड़कर निशबद्ध खड़ा था। योगी/गुरु  स्मित हास्य करके सातवे शिष्य के पास देख रहे थे।  आधा घंटा हो गया।  किसान अब बहुत ही क्रोधित हो गया  ओर उसके भाषा /बोल असहनीय  हो  गये। 
उससमय वह सातवे शिष्य की सहनशीलता का अंत हो  गयी ओर वह भी किसान उलटा और किसान के शब्द में उसे से झगड़ ने लगा।  यह देखकर योगी सातवे शिष्य को उधर छोड़ कर चले गये।  छह  शिष्य भी योगी के पीछे निकल पड़े। आगे निकले ते वक्त छह  शिष्य में से एक ने योगी को पुछा "किसान  शिष्य को उलटा और गाली दे रहा था तब आप मुस्करा रहे थे।"ओर जब सातवें शिष्य ने प्रत्युत्तर देने के पश्च्यात आप उसे अकेला छोड़कर निकल पड़े इसका अर्थ क्या हैं?

योगी महाराज बोले "जिस समय वह हाथ जोड़कर निशबद्ध खड़ा था उस वक्त उसके पीछे सात भगवान उसके रक्षण हेतु खड़े थे"। वह में देख रहा था।  लेकिन उस शिष्य ने भगवान का काम अपने खुद पर ले कर प्रत्युत्तर देने लगा तो वो सारे भगवान चले गये। जहाँ पर ईश्वर शक्ति लोप हो  गई वहा पर में नहीं रुक सकता।