Saturday, 29 September 2018

मन का जहर - Poison in Heart

नयी नवेली बहु अपने सास के साथ रोज के झगड़े से परेशान होती है |अपने पति को अलग रहने की बात करती हैं |लेकिन पति माँ की बीमारियों की कारन टाल देता हैं | 

बहु अपने पहचान के वैद्य के पास जाती है |और कहती हैं| "मुझे तकलीफ से बचाने के लिये आप मुझे कोई जहर दे दो " जिससे  मेरी सास मर जाये| 


मन  का जहर


बहुत सोच विचार के बाद कहते हैं की"मैं तुम्हे कुछ वनस्पति देता हूँ |

उसे रोज अपने सास के खाने में मिला देना लेकिन सास को इसका गुमान नहीं होना चाहिये| उनके लिये उनका स्वादिष्ट भोजन बनाना | उनकी अच्छी से सेवा करना| वोह कुछ भी बोले तुम अपने मन का नियंत्रण नहीं खोना |  

जहर का असर धीरे-धीरे होगा और तुम पैर कोई शक नहीं होगा| 

बहु ने अपना काम चालू किया|सास के झगड़े को नजरअंदाज करने लगी|दीर्घकालीन लोभ के चलते बहु चुपचाप रहती | 

वैद्य के कहनेनुसार बहु सास का मन जितने के लिये हर कोशिस करती|इसतरह छः मास गुजर जाते हैं और उसे क्रोध पर नियंत्रण रखने की आदत हो गयी | 
सास भी अपना गुस्सा त्याग कर बहु को बेटी समान पेश आने लगी | 

सास अपने बहु के लिये अच्छे गुणगान करने लगी | 

बहु वैद्य के पास जाकर कहने लगी|मेरी सास मेरी माँ बन गयी | वोह जाने नहीं चाहिये|जहर का असर निकलने के लिये  कुछ वनस्पति दे दो | 

वैद्यने कहा "जहर तो तुम्हारे मन में था | वोह तो निकल गया | 



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