मनुष्य बोल सकते हैं। पशु -पक्षी बोल नहीं सकते। मात्र भगवान का दिया हुआ अनोखा वरदान मनुष्य ठीक से इस्तेमाल नहीं करते हैं। लोगो की निंदा करना और दोष निकलना इसी में अपना जीवन व्यर्थ करते हैं।
अपने बुढ़ापे में एक व्यक्तिको कोई मित्र सखा नहीं होता। अपने आयुष्य के अंतिम वक्त कुछ अच्छे करने की सोचता हैं. वोह व्यक्ति एक धर्मगुरु के पास जाकर अपनी इच्छा व्यक्त करता हैं।
वोह व्यक्ति धर्मगुरुसे कहता हैं मुझे मार्ग दिखाओ। धर्मगुरु बोलते हैं एक काम करो। यह थैला लो इस में पंछिओं के पंखे से भरे हूँ हैं। गाव के बाहर जाकर खुले ज़मीन पर बिछा कर आना। व्यक्ति धर्मगुरु ने जैसे कहा वैसे करके आ गया। धर्मगुरु ने उस व्यक्तिको कहा की फिर से जाकर पंखे जमा कर लाना।
वोह व्यक्ति जाकर देखता हैं की उसे वहा पर एक भी पंख नहीं मिलते। सारे पंख उड जाते हैं।
धर्मगुरु उसे कहते हैं उड़कर गये हुए पंख फिर से नहीं जमा कर सकते हैं। वैसे ही बोले गए शब्द फिर वापस नहीं लिए जा सकते हैं। इसलिए हमेशा अच्छा और मीठा बोलना बाद में पश्चाताप करना ना पड़े।
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| मीठा बोलना - एक अच्छी आदत |
अपने बुढ़ापे में एक व्यक्तिको कोई मित्र सखा नहीं होता। अपने आयुष्य के अंतिम वक्त कुछ अच्छे करने की सोचता हैं. वोह व्यक्ति एक धर्मगुरु के पास जाकर अपनी इच्छा व्यक्त करता हैं।
वोह व्यक्ति धर्मगुरुसे कहता हैं मुझे मार्ग दिखाओ। धर्मगुरु बोलते हैं एक काम करो। यह थैला लो इस में पंछिओं के पंखे से भरे हूँ हैं। गाव के बाहर जाकर खुले ज़मीन पर बिछा कर आना। व्यक्ति धर्मगुरु ने जैसे कहा वैसे करके आ गया। धर्मगुरु ने उस व्यक्तिको कहा की फिर से जाकर पंखे जमा कर लाना।
वोह व्यक्ति जाकर देखता हैं की उसे वहा पर एक भी पंख नहीं मिलते। सारे पंख उड जाते हैं।
धर्मगुरु उसे कहते हैं उड़कर गये हुए पंख फिर से नहीं जमा कर सकते हैं। वैसे ही बोले गए शब्द फिर वापस नहीं लिए जा सकते हैं। इसलिए हमेशा अच्छा और मीठा बोलना बाद में पश्चाताप करना ना पड़े।

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