Saturday, 20 June 2015

सच्चा सुगंध - सच्ची खुसबू -

एक  बार स्वामी विवेकानंद के पास उनका एक शिष्य  आया। वह भगवान  के लिए दोष दे रहा था। वो कहने लगा स्वामीजी भगवान  ने हम यह देह देकर उसमे राग (गुस्सा) ,लोभ ,मद ,मत्सर ऐसे विविध दुर्गुण भरे हुए  हैं। मनुष्य के लिये जन्मः  शत्रु  दिए है।  इसलिये हमे  सुख  नहीं हैं।  यह भगवान ने अच्छा  नहीं किया हैं। 
 
सच्चा सुगंध - सच्ची  खुसबू




स्वामीजी ने शिष्य  को  कहा  मेरे साथ चलो। दोनों भी एक  बगीचे में गए।  फूल  और पेड़ देख कर यहाँ  वहा घूमने लगे। शिष्य ने गुलाब और फूलोँ के पोधे देखे। बगीचे में सुगंध फैला हूँआ  था।  शिष्य आनंदी था।  उसी  समय माली आकर पोंधो को खाद डालने लगा।  खाद कि बदबू शिष्यको  दुखी कर  गयी। इसलिए  उसने  माली  और  स्वामीजी को  अपनी  नापसंती  बताई।  स्वामीजी ने कुछ नहीं कहा।  माली ने  वह खाद  हर एक  पोंधो के जड़ में भरकर  आगे जाने लगा। इसी  समय  स्वामीजी ने  माली  को कहा  यह  क्या  कर रहे हो।  गंदा खाद पोंधो के जड़ में क्यों  भर  रहे हो।  


माली  ने कहा गंदा खाद ही पोंधोको  फूल  लाते हैं और उनका रंग हमे आनंदी करता  हैं। बगीचे के पोंधो खाद के वजह से लहरा  रहे हैं।   स्वामीजीने  कहा कमाल हो गया इन पोंधो का बदबूको  सुगंधी बना  थे हैं। 
अगर  यह पोधे  बदबूको  सुगंधी बना सकते हैं  तो मनुष्य अपने दुर्गुणों को  सदगुणो में  परावर्तित क्यों नहीं कर  सकता।  

स्वामीजीने   उदाहरण से  दिया हुया विचार शिष्य को जीने के लिए नया ध्येय देकर  गया।





 

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