Monday, 28 September 2015

व्यवहारिक आश्रम

पवनार आश्रम में आचार्य विनोबाजी ने साफ़-सफाई   की काम  हाँथ में लिया था। वहा पर  उद्योगपति भी आचार्य जी  को मदत  कर  रहे थे। वह  सफाई  उन्हें थोड़ा मुश्किल हो रहा था ।

फिर आचार्य जी बोले "अच्छा  हैं। आप आश्रम के  सारे लालटेन साफ़ करो ,उनके  शीशे साफ़ करना  और  लालटेन में मिटटी  का तेल  भरना " यह सब काम करो। 
आचार्य विनोबा
उद्योगपतिने  तुरंत  अपनी सहमती  दिखायी। दूसरे  दिन शाम को विनोबाजी बाहर से आश्रम में आये। उन्होने देखा की आँगन में मिटटी  का तेल का तीक्ष्ण गंध आ रहा था। जमीन  पर तेल गिरा पड़ा था। और एक कोने में साफ़ लालटेन रखे थे। उन्होने उद्योगपति  बुलाया पूछा "इतना तेल   कैसे  गिर पड़ा?"

उद्योगपतिने  कहा "मैंने लालटेन साफ़ करने पश्चायत उसमे  तेल भरा " और तेल पूरा भरने के कारण यहाँ से वह ले  जाते वक्त तेलगिरने लगा । आचार्य बोले "बेटा , काम करते  वक्त हमारा पूरा मन उस  में लगा होना चाहिये। 

 लालटेन थोड़ी  रिक्त होनी चाहिये ,तो लालटेन से तेल गिर नहीं पड़ता। और उसके  कारण  लालटेन का  विस्फोट  का  खतरा  नहीं होता। उद्योगपति आचार्य को  ध्यान से सुन रहे थे। 


आचार्य आगे बोले"अपने मन की  टंकी भी ऐसी  होनी चाहिये। केवल अपने ही विचारोंसे पूरी भरी नहीं होनी चाहिये। उसमे थोड़ी जगह रखनी चाहिये दूसरों के विचारों के  लिये।  तो फिर विचारों  की  गड़बड़   नहीं होती। एकाकीपन नही आता। 





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