Friday, 9 October 2015

कृति से मार्गदर्शन

 यह सत्य कथा दक्षिण भारत के साधु रमना महर्षि  के आश्रम से हैं। 
अपने रोज़ाना जीवन में आने वाली प्रत्येक वस्तु महत्त्वपूर्ण होती हैं। यह उनकी धारणा होती थी। किसी भी वस्तुका  अपव्यय उन्हें मान्य नहीं था। 

रमणा महर्षि
एक बार साधु रमना महर्षि आश्रम के भोजन कक्ष से जाते समय भोजन कक्ष के नजदीक  थोड़े चावल गिरे देखे।  उसी समय वोह जमीन पर  बैठकर चावल इकट्ठा करने लगे। महर्षि को अचानक ऐसे भोजन कक्ष के बाहर बैठे देखकर शिष्यों बेचैन  हो  गए। महर्षि क्या कर रहे हैं देखने के लिए सारे भक्त भीड़ में इकट्ठा  हो गये। ईश्वर भक्ति के लिये अपने सारे सुख त्याग करनेवाला  महान महर्षि थोडेसे  चावल के दाने के लिए उनका संघर्ष  देखकर भक्त अचंबित हो गए। 

 महर्षिके इस  कृत्य पर उनका विश्वास नहीं हो रहा था। अंतत एक शिष्य ने गुरुदेव को पूछा ," महर्षि, भोजन कक्ष में चावल के बहुत सारे बोरी है। 
और आप यहाँ थोडेसे चावल के दाने के लिए इतना परिश्रम क्यों कर रहे हो "? यह सुनकर महर्षि ने शिष्य के पास देखा।  और फिरसे चावल इकट्ठा करने लगे। और बोले ,"तुमको यह सिर्फ कुछ चावल के दाने दिख रहे हैं। लेकिन उस दाने में क्या हैं ,यह देखने की कोशिश करो। 

जमीन की खुदाई, बीज बोने वाले किसान की कठोर मेहनत,समुद्र का पानी ,सूरज की रोशनी,बादल और बारिश और चावल के पोंधे का नवजीवन…  यह सब जिसमे समाया हैं ऐसे बहुमोल  दाने पैर से लात मारना,नष्ट करना कितना योग्य हैं ?

प्रश्न पूछने वाले और सभी शिष्यों को अपनी  भूल समज  आयी। 

अन्न और पानी नुक़सान करनो वालो को महर्षि ने अपने छोटे से कृत्य से बहुत कुछ बता दिया।


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