Friday, 20 November 2015

हीरों का क्या मोल ? Value of Diamonds

संत  कबीर का बेटा कमाल बहुत अच्छे सुरीले शब्द में कीर्तन करता  था।  कबीर  भी मन लगाकर कीर्तन सुनते थे। बहुत बार कमाल कीर्तन मे दंग  रहते ओर कबीर उनके पीछे उनको साथ देते थे। 

पिताजी की अनुमती  लेकर कमाल  एक दिन द्वारका नगरी चले गये। रात्र समय कमाल किसी गाँव में किसी के घर रहते  और वही पर कीर्तन की सुरुवात करते थे। उनके कीर्तन की अच्छे सुरीले शब्द/बोली  सब श्रोतो  के  लिये मुख्य विषय होता था। उनका कीर्तन सुनने  लिये  बहुत  आते थे।  जो  भी गाँव वोह जाते थे लोग उनका सत्कार  करते थे।  आखिर वोह   एक दिन द्वारका पहुँच गये। 




नदी में स्नान किया और मंदिर जाकर पूजा,आरती  कियी। कृष्णकनिया की मूर्ति के सामने अपने भक्ति रचना गाते थे।  उनका द्वारका में यही दिनचर्या होती थी।  चार मास पश्च्यात वोह फिर अपने गाँव निकल पड़े।  रास्ते में चित्रकूट नगरी में ठहर गये। 

उधर के विष्णुदास सावकार कमाल को प्रेमसे घर ले गये। रात्र को उनको कीर्तन उन्होंने सुना ,सभी लोग आस्चर्यचकित हो गये।  सावकार ने अपने संपत्ति से एक हिरा कमाल को दे दिया। 

कमाल बोले "मैं यह हिरा नहीं ले  सकता ,मेरे पिताजी को अच्छा नहीं लगता। " हमारे लिये  हिरा और पत्थर दोनों समान हैं।  आप मुझे यह हिरा क्योँ  दे रहे हो ?

सावकार बोले "कीर्तन  कहने वालो को कुछ द्रव्य देना जरुरी हैं। 

फिर कमाल बोले "द्वारका में कृष्णा देखा,उसके सामने हीरों  का क्या मोल?

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