Friday, 23 October 2015

अच्छाई में परमेश्वर -

एक  बार एक योगी अपने सात शिस्यों को लेकर एक गाँव  से दूसरे  गाँव यात्रा कर रहे थे।  रास्ता एक कच्ची सड़क जो खेतोँ को लग कर जा रही थी।  खेतोँ  में एक-डेढ़  मास हो गया था। एक जगह पर एक (सातवां)शिष्य  बहुत पीछे  रह गया। वह योगी और बाकी छह  शिष्य बहुत आगे निकल गये।

सातवां शिष्य कच्ची सड़क से न जाते वह खेतों के  बीच से उनके साथ जाने हेतु  निकल गया। खेत के उस पार किसान डंडा लेकर बैठा था।  वह भागकर पीछे रहे शिष्यके पास आया तब तक शिष्य अपने योगी और अन्य शिस्योंके पास पहुँच गया। उसी समय वह किसान उधर  आ गया। और वह उलटा -सीधा बहुत कुछ  सातवे शिष्य को बोलने लगा। 



सातवे शिष्यने  अपने गुरु के  पास देखकर बड़े विनम्रता हाथ जोड़कर बोला "मेरे से जो गलती हुयी है उसके लिये  आप मुझे माफ़ कर दो "। वह किसान बिना  सौजन्य दिखाये  ओर जोरसे उलटा सातवे शिष्य को  बोलने लगा।  सातवां शिष्य अपने हाथ जोड़कर निशबद्ध खड़ा था। योगी/गुरु  स्मित हास्य करके सातवे शिष्य के पास देख रहे थे।  आधा घंटा हो गया।  किसान अब बहुत ही क्रोधित हो गया  ओर उसके भाषा /बोल असहनीय  हो  गये। 
उससमय वह सातवे शिष्य की सहनशीलता का अंत हो  गयी ओर वह भी किसान उलटा और किसान के शब्द में उसे से झगड़ ने लगा।  यह देखकर योगी सातवे शिष्य को उधर छोड़ कर चले गये।  छह  शिष्य भी योगी के पीछे निकल पड़े। आगे निकले ते वक्त छह  शिष्य में से एक ने योगी को पुछा "किसान  शिष्य को उलटा और गाली दे रहा था तब आप मुस्करा रहे थे।"ओर जब सातवें शिष्य ने प्रत्युत्तर देने के पश्च्यात आप उसे अकेला छोड़कर निकल पड़े इसका अर्थ क्या हैं?

योगी महाराज बोले "जिस समय वह हाथ जोड़कर निशबद्ध खड़ा था उस वक्त उसके पीछे सात भगवान उसके रक्षण हेतु खड़े थे"। वह में देख रहा था।  लेकिन उस शिष्य ने भगवान का काम अपने खुद पर ले कर प्रत्युत्तर देने लगा तो वो सारे भगवान चले गये। जहाँ पर ईश्वर शक्ति लोप हो  गई वहा पर में नहीं रुक सकता। 

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