Saturday, 24 June 2017

भोजन का स्वाद (Taste of Food)

एक बार एक राजा ने अपने राज्य के अच्छे संत को अपने राजमहल में भोजन के लिए आग्रह किया जिसे संत ने स्वीकार कर लिया।

संत का भोजन जो रसोइया बना रहा था, वह लालची था।जहाँ वह भोजन बना रहा था उसके सामने वाली खिड़की पर रानी का नौलाखा हार टंगि हुआ था।


 भोजन का स्वाद

वहाँ बार बार उसकी दृष्टी जाती थी और उसके मन में विचार आता कि कैसे भी मौका मिले तो मैं इस हार को चुरा लूँ , लेकिन वह उसे चुराने में सफल न हो सका।


इन चोरी के विचारों में उसने भोजन बनाया और संत ने उसे खाया तो पता है क्या हुआ ? .... 

संत के मन में भी चोरी के विचार आने लगे।और जाते - जाते रानी का नौलखा हार लेकर चलता बना।

इस पर किसी ने ध्यान भी नहीं दिया।सुबह सारा राजमहल छान मारा और हार नहीं मिला।

उधर संत जब अपनी कुटिया में पहुँचे, अगले दिन भोजन का असर कम हुआ तो उनकी हैरानी हुई कि मैं इतना त्यागी,तपस्वी संत, यह मैंने क्या किया ? तपस्वी को समझ आ गया ।उसने राजा को बुलाया और कहा कि मेरा भोजन जिस रसोइये ने बनाया था उसे बुलाये ।रसोइये को बुलाकर जब सख्ती से पूछा गया तो उसने सारी बातें सच - सच बता दी कि उसके मन में हार की चोरी के विचार थे।


अब संत ने राजा को वह हार दिया और कहा कि महाराज देखा आपने ,अन्न का मन पर कितना असर पड़ता है।

इस रसोइये ने चोरी के विचारों से भोजन बनाया तो उसे खाकर मेरे जैसे संत के विचार भी खराब हो गये तो एक साधारण मनुष्य पर इसका कितना असर होता।

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