एक बार गुरु को अपना उत्तराधिकारी चुनना था। इसीकेलिये गुरु को अपने अनेक शिष्यों में से किसी एक को चुनना था। उन्होंने परीक्षा करनी थी।
गुरु ने अपने सभी शिष्योंको बुलाकर दिवार बनाने कहा। सभी शिष्य काम पर लगे । जल्द ही उन्होंने एक दिवार बनाई। गुरुने उस दिवार को तोड़ कर फिर से बनाने को कहा।
दिवार बनानी और उसे तोडना ऐसा बहुत बार हो गया। धीरे -धीरे सभी शिष्य परेशान हो गये और दिवार बनाना छोड़ दिये।
लेकिन चित्रभानु नामक शिष्य काम करने लगा। गुरु उसके पास आकर बोले "तुम्हारे सारे मित्र काम छोड़ कर चले गए" लेकिन तुम अब भी काम कर रहे हो।
चित्रभानु हात जोड़कर बोला"मैं गुरु कीआज्ञा कैसे भंग करु?जब तक
आप रोकोगे नहीं तब तक मै काम करते रहूंगा।
गुरु बहुत आनंदित हो गये। अपने खोज पूर्ण हो गयी ऐसे उन्हें लगा।
उसे अपना उत्तराधिकारी चुन लिया।
शिष्योंसे बोले"संसारमें बहुत लोग बड़ी बड़ी इच्छा रखते हैं।और
उच्चतमपद पाने की इच्छा रखते हैं।
लेकिन उसे पाने की पात्रता प्राप्त करने की प्रयत्न नहीं करते।या थोड़ा फार
प्रयत्न करके हार मानते हैं।
कोई भी लक्ष्य पाने के लिये इच्छा के साथ धैर्य जरुरी हैं।
गुरु ने अपने सभी शिष्योंको बुलाकर दिवार बनाने कहा। सभी शिष्य काम पर लगे । जल्द ही उन्होंने एक दिवार बनाई। गुरुने उस दिवार को तोड़ कर फिर से बनाने को कहा।
दिवार बनानी और उसे तोडना ऐसा बहुत बार हो गया। धीरे -धीरे सभी शिष्य परेशान हो गये और दिवार बनाना छोड़ दिये।
लेकिन चित्रभानु नामक शिष्य काम करने लगा। गुरु उसके पास आकर बोले "तुम्हारे सारे मित्र काम छोड़ कर चले गए" लेकिन तुम अब भी काम कर रहे हो।
चित्रभानु हात जोड़कर बोला"मैं गुरु कीआज्ञा कैसे भंग करु?जब तक
आप रोकोगे नहीं तब तक मै काम करते रहूंगा।
गुरु बहुत आनंदित हो गये। अपने खोज पूर्ण हो गयी ऐसे उन्हें लगा।
उसे अपना उत्तराधिकारी चुन लिया।
शिष्योंसे बोले"संसारमें बहुत लोग बड़ी बड़ी इच्छा रखते हैं।और
उच्चतमपद पाने की इच्छा रखते हैं।
लेकिन उसे पाने की पात्रता प्राप्त करने की प्रयत्न नहीं करते।या थोड़ा फार
प्रयत्न करके हार मानते हैं।
कोई भी लक्ष्य पाने के लिये इच्छा के साथ धैर्य जरुरी हैं।

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