एक बार हनुमानजी ने श्रीराम से कहा कि अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये,
किन्तु मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर मैं गदगद हो गया यदि मैं कूद पड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि मै न होता तो क्या होता ?
मुझे लगता कि यदि मै न होता तो सीताजी को कौन बचाता ?
परन्तु आपने उन्हें बचाने का काम रावण की पत्नी को ही सौंप दिया।
तब मै समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं!
आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है वह लंका जलायेगा तो मै बड़ी चिंता मे पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा नही है!
तब त्रिजटा कह रही है तो मै क्या करुं पर जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिये दौड़े तो मैंने बचने की तनिक भी चेष्टा नहीं की,और जब विभीषण ने कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो मै समझ गया कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने उपाय कर दिया !
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर आग लगाई जाये तो मैं गदगद् हो गया कि उस त्रिजटा की बात सच थी,
वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, कपड़ा लाता,कहां आग ढूंढता, वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया
इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ हो रहा है वह ईश्वरीय विधान है, हम-आप तो निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी ये भ्रम न पालें कि मै न होता तो क्या होता!
किन्तु मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर मैं गदगद हो गया यदि मैं कूद पड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि मै न होता तो क्या होता ?
मुझे लगता कि यदि मै न होता तो सीताजी को कौन बचाता ?
परन्तु आपने उन्हें बचाने का काम रावण की पत्नी को ही सौंप दिया।
तब मै समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं!
आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है वह लंका जलायेगा तो मै बड़ी चिंता मे पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा नही है!
तब त्रिजटा कह रही है तो मै क्या करुं पर जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिये दौड़े तो मैंने बचने की तनिक भी चेष्टा नहीं की,और जब विभीषण ने कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो मै समझ गया कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने उपाय कर दिया !
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर आग लगाई जाये तो मैं गदगद् हो गया कि उस त्रिजटा की बात सच थी,
वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, कपड़ा लाता,कहां आग ढूंढता, वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया
इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ हो रहा है वह ईश्वरीय विधान है, हम-आप तो निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी ये भ्रम न पालें कि मै न होता तो क्या होता!
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