एक बार एक मनुष्य अपने जीवन की परेसानियोसे परेशान होकर शांति की तलाश करने लगा। अंततः वह एक आश्रम में जाकर साधु से कहने लगा स्वामीजी में शांति की तलाश में यहाँ आया हूँ। स्वामीजी सिर्फ मुस्कराये। उसे कहा की थोड़े दिन आश्रम में रहो।
वह मनुष्य आश्रम के दैनंदिन काम करने लगा । कुछ दिन रहने के पश्चात वह मनुष्यभी आश्रम का अभिन्न अंग लगा।
एक दिन शाम समय स्वामीजी कुछ अपनी कुटिया के बाहर ढूंढने लगे। बहुत देर होने पर मनुष्य स्वामीजी से पुछा की आप क्या ढूंढ रहे हो ?। स्वामीजी बोले में सूई ढूंढ रहा हूँ। मनुष्यभी सूई को ढूंढने लगा।
बहुत देर पश्चात उसने स्वामीजी को पूंछा की सूई कहा खोई हैं। फिर स्वामीजी बोले में कुटियाके अंदर कुछ लाम कर रहा था। और मेरी सूई गुम गयी।
मनुष्य कहने लगा स्वामीजी सूई तो कुटिया में खोयी हैं और उसे कुटियाके बाहर ढूंढ रहे हो तो कैसे मिलेगी। हमे सूईको कुटियाके अंदर ढूंढे ने होगी।
तो स्वामीजी बोले तुम्हारी गुम हुई जीवन की शांति तुम यहाँ पर ढूंढ रहे तो मेरी सूई क्यों नहीं मिलेगी।
जो वस्तु जहा पर खोयी हैं उसे हमे वही पर ढूंढना जरुरी हैं।
मनुष्यको अपनी गलती का एहसास हो गया वोह तुरंत स्वामीजी के आशीर्वाद लेकर अपने घर की ओर चला गया।
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| खोज - खोई वस्तू की |
वह मनुष्य आश्रम के दैनंदिन काम करने लगा । कुछ दिन रहने के पश्चात वह मनुष्यभी आश्रम का अभिन्न अंग लगा।
एक दिन शाम समय स्वामीजी कुछ अपनी कुटिया के बाहर ढूंढने लगे। बहुत देर होने पर मनुष्य स्वामीजी से पुछा की आप क्या ढूंढ रहे हो ?। स्वामीजी बोले में सूई ढूंढ रहा हूँ। मनुष्यभी सूई को ढूंढने लगा।
बहुत देर पश्चात उसने स्वामीजी को पूंछा की सूई कहा खोई हैं। फिर स्वामीजी बोले में कुटियाके अंदर कुछ लाम कर रहा था। और मेरी सूई गुम गयी।
मनुष्य कहने लगा स्वामीजी सूई तो कुटिया में खोयी हैं और उसे कुटियाके बाहर ढूंढ रहे हो तो कैसे मिलेगी। हमे सूईको कुटियाके अंदर ढूंढे ने होगी।
तो स्वामीजी बोले तुम्हारी गुम हुई जीवन की शांति तुम यहाँ पर ढूंढ रहे तो मेरी सूई क्यों नहीं मिलेगी।
जो वस्तु जहा पर खोयी हैं उसे हमे वही पर ढूंढना जरुरी हैं।
मनुष्यको अपनी गलती का एहसास हो गया वोह तुरंत स्वामीजी के आशीर्वाद लेकर अपने घर की ओर चला गया।
