यह ५० साल पुरानी बात हैं। जल्दी सुबह सोने-चांदी दुकान में दो लोग आए थे। एक मुस्लिम बूढ़े सफ़ेद दाढ़ी और २० साल की उम्र का नौजवान।
यह बूढ़े आदमी का कराची पाकिस्तान में बढ़ा व्यापार था। उसने व्यापारकी सुरुवात पुणे की में थी। उनका माल देश-विदेश में भेजा जाता था। उसने यह व्यापार १९२० में चालु किया था। उस बूढ़े आदमी को व्यापारमें बहुत बरकत मिली थी।
१९४५ में मजहबी (जातीय ) दंगे में उस आदमी का सब कुछ चला गया। एक ही दिन में सब कुछ छीन गया।
और उस बूढ़े आदमी को अपनी बाल बच्चे के साथ पाकिस्तान में आश्रित बन कर जाना पड़ा। उस बूढ़े आदमी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी। ओर पूरा व्यापार फिर से खड़ा किया और अपने बेटो के हवाले किया। उसने अच्छे मन से व्यवसाय किया और लोगो की दुवा ली। फिर वोह सोचने लगा ओर कुछ करना बाकी हैं क्या ?
उसने यह बात अपने मौलवी से कही। मौलवी ने किसीका कुछ उधार देना बाकी हैं क्या ? कुछ याद करो।
इस्लाम में ऐसे उधारी बाकी रहे आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती। उधारी देने वाले आत्मा को भी मुक्ति नहीं मिलती।
उस बूढ़े आदमी को एकाएक याद आया की मैंने व्यापार के लिए पुणे में सोने-चांदी दुकान से कर्ज लिया था।
मजहबी (जातीय ) दंगे में रातोरात में चला आया ओर यह कर्ज देने लिए समय नहीं मिला।
बूढ़ा आदमी तत्काल अपने पोते और पैसो के साथ पुणे आ गये। जल्दी सुबह सोने-चांदी दुकान में जाकर अपना कर्ज ओर व्याज देने आ गये। सोने-चांदी दुकान मलिक ने बूढ़े आदमी को पहचाना ओर उनकी सब बात सुनी। लेकिन पैसे लेने लिया साफ़ मना किया। दुकान मलिक ने कहा मैंने आपका कर्ज २५ साल पहले मेरे हिसाब से निकाल दिया। आप अकस्मात् परेशानी की वजह से कर्ज नहीं दे पाये। मेरे हिसाब के किताब में कर्ज नहीं दिख रहा तो मैं वापस लू कैसे। यह पैसा मेरा नहीं मैं लूँगा।
दुकान मलिक ने जैन धर्म की शिक्षा कही "मन से ,विचारों से ओर अपनी कृती से लिया हुआ निर्णय
अंतिम होता हैं ". लोभी मन से लिया हुआ निर्णय पाप हैं।
दुकान मलिक ओर बूढ़े आदमी अपनी बात पर अड़े रहे। दुकान मलिक के लेखा परीक्षक ने कहा की पुणे कैंप में ईस्ट स्ट्रीट में एक यतीम खाना हैं। हम सब लोग वहा पर जाकर यह पैसा वहा जमा कर देंगे। अनाथ बच्चोँ की सेवा / मदद करने (देख-भाल करना) वाली बहुत नामी मुस्लिम संस्था हैं। दुकान मलिक ओर बूढ़े आदमी दोनों को यह बात अच्छी लगी। दोनों (दुकान मलिक ओर बूढ़े आदमी)संस्था में जाकर पैसे दिए ओर कुछ विदेशी कानून कार्यवाही पूरी की। बूढ़े आदमी समाधानी हो गये।
बूढ़ा आदमी अपने पोते के साथ वापस अपने घर गये। ३-४ हफ्तो के बाद दुकान मलिक को बूढ़े आदमी के पोते से पत्र आया "अब्बाजान पैगंबर वासी हो गये "
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| कम बोलो ; अभ्यास ज्यादा |
यह बूढ़े आदमी का कराची पाकिस्तान में बढ़ा व्यापार था। उसने व्यापारकी सुरुवात पुणे की में थी। उनका माल देश-विदेश में भेजा जाता था। उसने यह व्यापार १९२० में चालु किया था। उस बूढ़े आदमी को व्यापारमें बहुत बरकत मिली थी।
१९४५ में मजहबी (जातीय ) दंगे में उस आदमी का सब कुछ चला गया। एक ही दिन में सब कुछ छीन गया।
और उस बूढ़े आदमी को अपनी बाल बच्चे के साथ पाकिस्तान में आश्रित बन कर जाना पड़ा। उस बूढ़े आदमी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी। ओर पूरा व्यापार फिर से खड़ा किया और अपने बेटो के हवाले किया। उसने अच्छे मन से व्यवसाय किया और लोगो की दुवा ली। फिर वोह सोचने लगा ओर कुछ करना बाकी हैं क्या ?
उसने यह बात अपने मौलवी से कही। मौलवी ने किसीका कुछ उधार देना बाकी हैं क्या ? कुछ याद करो।
इस्लाम में ऐसे उधारी बाकी रहे आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती। उधारी देने वाले आत्मा को भी मुक्ति नहीं मिलती।
उस बूढ़े आदमी को एकाएक याद आया की मैंने व्यापार के लिए पुणे में सोने-चांदी दुकान से कर्ज लिया था।
मजहबी (जातीय ) दंगे में रातोरात में चला आया ओर यह कर्ज देने लिए समय नहीं मिला।
बूढ़ा आदमी तत्काल अपने पोते और पैसो के साथ पुणे आ गये। जल्दी सुबह सोने-चांदी दुकान में जाकर अपना कर्ज ओर व्याज देने आ गये। सोने-चांदी दुकान मलिक ने बूढ़े आदमी को पहचाना ओर उनकी सब बात सुनी। लेकिन पैसे लेने लिया साफ़ मना किया। दुकान मलिक ने कहा मैंने आपका कर्ज २५ साल पहले मेरे हिसाब से निकाल दिया। आप अकस्मात् परेशानी की वजह से कर्ज नहीं दे पाये। मेरे हिसाब के किताब में कर्ज नहीं दिख रहा तो मैं वापस लू कैसे। यह पैसा मेरा नहीं मैं लूँगा।
दुकान मलिक ने जैन धर्म की शिक्षा कही "मन से ,विचारों से ओर अपनी कृती से लिया हुआ निर्णय
अंतिम होता हैं ". लोभी मन से लिया हुआ निर्णय पाप हैं।
दुकान मलिक ओर बूढ़े आदमी अपनी बात पर अड़े रहे। दुकान मलिक के लेखा परीक्षक ने कहा की पुणे कैंप में ईस्ट स्ट्रीट में एक यतीम खाना हैं। हम सब लोग वहा पर जाकर यह पैसा वहा जमा कर देंगे। अनाथ बच्चोँ की सेवा / मदद करने (देख-भाल करना) वाली बहुत नामी मुस्लिम संस्था हैं। दुकान मलिक ओर बूढ़े आदमी दोनों को यह बात अच्छी लगी। दोनों (दुकान मलिक ओर बूढ़े आदमी)संस्था में जाकर पैसे दिए ओर कुछ विदेशी कानून कार्यवाही पूरी की। बूढ़े आदमी समाधानी हो गये।
बूढ़ा आदमी अपने पोते के साथ वापस अपने घर गये। ३-४ हफ्तो के बाद दुकान मलिक को बूढ़े आदमी के पोते से पत्र आया "अब्बाजान पैगंबर वासी हो गये "

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