Wednesday, 29 July 2015

जैसी दृष्टी वैसी सृष्टि

एक दिन धर्मराज युधिस्तर ने एक यज्ञ किया।यज्ञ में बहुत लोग भोजन का आस्वाद ले रहे थे। 
धर्मराज और दुर्योदन सब लोगों का ध्यान रख रहे थे।भगवान श्रीकृष्ण ने वह देखा ओर द्रौपदीको बुलाया वोह दोनों धर्मराजके पास चले गए।  
 
जैसी  दृष्टी वैसी सृष्टि



श्रीकृष्ण बोले " राजा यहाँ पर बहुत लोग भोजन कर रहे हैं। सब लोग अच्छे नहीं होते हैं।तुम एक काम करो तुम्हारे दृष्टि से यहाँ पर जो बुरे/दुर्जन लोग भोजन कर रहे हैं उनका मुझे नंबर(अंक) बताओ "।

फिर श्रीकृष्ण और द्रौपदी दुर्योदन पास चले गए। श्रीकृष्ण बोले "दुर्योदन ! दुनिया में सभी लोग बुरे नहीं होते हैं।यहाँ पर थोड़े तो सज्जन लोग होंगे। तुम जाओ और तुम्हारे दृष्टि से यहाँ पर जो सज्जन/अच्छे लोग भोजन कर रहे हैं उनका मुझे नंबर(अंक) बताओ " !

बस!दोनों काम पर लगे।बहुत देर के बाद धर्मराज श्रीकृष्णके पास आकर बोले। यहाँ इस पंडाल में कोई भी दृष्ट,दुर्जन नहीं हैं !यहाँ पर सब लोग अच्छे और सज्जन। 

इसी समय वहा पर दुर्योदन आया और परेशानी से बोला"यहाँ पर एक भी आदमी सज्जन/अच्छा नहीं हैं। यहाँ पर सब लोग दृष्ट और दुर्जन हैं।  

भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी एकदूसरे के पास देख कर हँसने लगे। लेकिन श्रीकृष्णने द्रौपदीको एक त्रिकाल सत्य बतया "दुनिया में लोग वोही होते हैं। वोह हैं वैसी ही होते हैं।लेकिन उनके पास देखने का हर एक दृष्टी अलग-अलग होती हैं।देखने का नजरिया और सोच अलग होती हैं।  

जैसी दृष्टी वैसी सृष्टि होती हैं। 
दोष देखने वालोँ और उसकी नजरिया में होता हैं। मनुष्य में नहीं।