Tuesday, 6 September 2016

धन का आदर (Respect For Money)

पुराने  ज़माने की बात  है। किसी  गाँव में  एक शेठ  रहता  था । उसका  नाम था नाथालाल शेठ था । 
 वो  जब भी  गाँव  के  बाजार से  निकलता था  तब लोग उसे नमस्ते  या सलाम करते थे, वो उसके जवाब में मुस्कारा कर अपना सिर हिला  देता था और बहुत धीरे से बोलता था की "घर जाकर बोल दूँगा ". 


धन का आदर


एक बार किसी परिचित व्यक्ति ने शेठ को यह बोलते हुये सुन लिया ।  तो उसने कुतूहल से शेठ को पूछ लिया कि शेठजी आप ऐसा क्यों बोलते हो के "घर  जाकर बोल दूंगा ।"

तब शेठ ने उस व्यक्ति को कहा ,मैं पहले धनवान नहीं था उस समय लोग मुझे "नाथू " कहकर बुलाते थे और आज के समय में धनवान हूँ तो लोग मुझे "नाथालाल शेठ " कहकर बुलाते हैं। यह इज्जत मुझे नहीं धन को दे रहे हैं । 

इसीलिये मैं रोज घर जाकर तिजोरी खोल का लष्मीजी (धन) को यह बता देता हूँ  की आज तुमको कितने लोगो ने नमस्ते या सलाम किया । 

इससे मेरे मन में अभिमान या ग़लतफ़हमी नहीं आती की लोग मुझे मान या इज्जत दे रहे हैं ।... 

इज्जत सिर्फ पैसे की हैं इन्सान की नहीं।.....